Friday 26 December 2014

धर्मांध टीपू सुलतान की वास्तविकता ४ मई १७९९ मौत


टीपू सुलतान को जानने के लिए उसके संपुर्ण जीवन में किये गए कार्यकलापों के विषय में समझना अत्यंत आवश्यक हैं | अपवाद के रूप में एक-दो मठ-मंदिर को सहयोग करने से सहस्त्रो मंदिरों को नष्ट-ध्वस्त करने का,लक्षावधी हिन्दुओ को इस्लाम में धर्मपरिवर्तन करने या उनकी हत्या का दोष टीपू के माथे से धुल नहीं सकता | 
टीपू के अत्याचारों की अनदेखी कर उसे धर्म निरपेक्ष सिद्ध करने के प्रयास को हम बौध्दिक आतंकवाद की श्रेणी में गिनती करे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, सेक्युलरवादियों का कहना हैं कि, टीपू ने श्री रंगपट्टनम के मंदिर और श्रृंगेरी मठ में दान दिया तथा श्रुङ्गेरि मठ के श्री शंकराचार्यजी के साथ टीपू का पत्र व्यवहार भी था | जहाँ तक श्रृंगेरी मठ से सम्बन्ध हैं

डॉ.एम्.गंगाधरन साप्ताहिक मातृभूमि जनवरी दिनांक १४-२० सन १९९० में लिखते हैं कि," टीपू सुलतान भूत प्रेत आदि में विश्वास रखता था। उसने, श्रृंगेरी मठ के आचार्यों को धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए दान-दक्षिणा भेजी जिससे उसकी इस्लामी सेना पर भुत प्रेत आदि का कूप्रभाव न पड़े |" PCN राजा-केसरी वार्षिक अंक १९६४ के अनुसार, श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर के पुजारियों द्वारा टीपू सुल्तान से आत्मरक्षा के लिए एक भविष्यवाणी की थी उसके भय से, "टीपू मंदिर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान करवाता हैं तो, उसे दक्षिण भारत का सुलतान बनने से कोई रोक नहीं सकता।" अंग्रेजों से एक बार युद्ध में विजय प्राप्त होने का श्रेय टीपू ने ज्योतिषों की उस सलाह को दिया था जिसके कारण उसे युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी , इसी कारण से टीपू ने उन ज्योतिषियों को और मंदिर को ईनाम रुपी सहयोग देकर सम्मानित किया था ना की धर्म निरपेक्षता या हिन्दुओ के प्रति सद्भावना थी।

नबाब हैदर अली की म्रत्यु के बाद उसका यह पुत्र टीपू मैसूर की गद्दी पर बैठा था। गद्दी पर बैठते ही टीपू ने मैसूर को मुस्लिम राज्य घोषित कर दिया। मुस्लिम सुल्तानों की परम्परा के अनुसार टीपू ने एक आम दरबार में घोषणा की,"मै सभी काफिरों को मुसलमान बनाकर रहूंगा।" तत्काल उसने सभी हिन्दुओं को आदेश जारी कर दिया।उसने मैसूर के गाव- गाँव के मुस्लिम अधिकारियों के पास लिखित सूचना भेज दी कि, "सभी हिन्दुओं को इस्लामी दीक्षा दो ! जो स्वेच्छा से मुसलमान न बने उसे बलपूर्वक मुसलमान बनाओ और जो पुरूष विरोध करे, उनका कत्ल करवा दो ! उनकी स्त्रिओं को पकडकर उन्हें दासी बनाकर मुसलमानों में बाँट दो। "

इस्लामीकरण का यह तांडव टीपू ने इतनी तेजी से चलाया कि , समस्त हिन्दू समाज में त्राहि त्राहि मच गई।इस्लामिक दानवों से बचने का कोई उपाय न देखकर धर्म रक्षा के विचार से हजारों हिंदू स्त्री पुरुषों ने अपने बच्चों समेंत तुंगभद्रा आदि नदिओं में कूद कर जान दे दी। हजारों ने अग्नि में प्रवेश कर अपनी जान दे दी ,किंतु धर्म त्यागना स्विकार नहि किया।

टीपू सुलतान को हमारे इतिहास में एक प्रजा वत्सल राजा के रूप में दर्शाया गया है।टीपू ने अपने राज्य में लगभग ५ लक्ष हिन्दुओ को बलात्कार से मुसलमान बनाया।लक्षो की संख्या में कत्ल करवाये। इसके कुछ ऐतिहासिक तथ्य भी उपलब्ध है जिनसे टीपू के दानवी हृदय का पता चलता हैं।
टीपू द्वारा हिन्दुओं पर किए गए अत्याचारो पर डॉ.गंगाधरन ब्रिटिश कमीशन रिपोर्ट के आधार पर लिखते हैं कि,"ज़मोरियन राजा के परिवार के सदस्यों को और अनेक नायर हिन्दुओ की बलपूर्वक सुन्नत करवाकर मुसलमान बना दिया गया था और गौ मांस खाने के लिए भी विवश किया गया था।"

* ब्रिटिश कमीशन रिपोर्ट के आधार पर, टीपू सुल्तान के मालाबार हमलों (१७८३-१७९१) के समय करीब ३०,००० हिन्दू नम्बुद्रि मालाबार में अपनी सारी धन-दौलत और घर-द्वार छोड़कर त्रावणकोर राज्य में आकर बस गए थे।
* इलान्कुलम कुंजन पिल्लई लिखते हैं कि, टीपू सुलतान के मालाबार आक्रमण के समय कोझीकोड में ७००० ब्राह्मणों के घर थे। उसमे से २००० को टीपू ने नष्ट कर दिया और टीपू के अत्याचार से लोग अपने अपने घरों को छोड़ कर जंगलों की ओर भाग गए। टीपू ने औरतों और बच्चों तक को नहीं छोड़ा। धर्म परिवर्तन के कारण मोपला मुसलमानों की संख्या में अत्यंत वृद्धि हुई और हिन्दू जनसंख्या न्यून हो गई।
* विल्ल्यम लोगेन मालाबार मैन्युअल में टीपू द्वारा तोड़े गए हिन्दू मंदिरों का उल्लेख करते हैं, जिनकी संख्या सैकड़ों में हैं।
* राजा वर्मा केरल में संस्कृत साहित्य का इतिहास में मंदिरों के टूटने का अत्यंत वीभत्स विवरण करते हुए लिखते हैं की,हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़कर व पशुओ के सर काटकर मंदिरों को अपवित्र किया जाता था।

मैसूर में भी टीपू के राज में हिंदुओ की स्थिति कुछ अच्छी न थी,"ल्युईस रईस के अनुसार, श्रीरंग पट्टनम के किले में केवल दो हिन्दू मंदिरों में हिन्दुओ को दैनिक पूजा करने का अधिकार था बाकी सभी मंदिरों की संपत्ति जब्त कर ली गई थी।"
यहाँ तक की राज्य सञ्चालन में हिन्दू और मुसलमानों में भेदभाव किया जाता था। मुसलमानों को कर में विशेष छुट थी और अगर कोई हिन्दू, मुसलमान बन जाता था तो उसे भी छुट दे दी जाती थी।

जहाँ तक सरकारी नौकरियों की बात थी हिन्दुओ को न के बराबर सरकारी नौकरी में रखा जाता था। कूल मिलाकर राज्य में ६५ सरकारी पदों में से एक ही प्रतिष्ठित हिन्दू था, केवल पूर्णिया पंडित !
* इतिहासकार एम्.ए.गोपालन के अनुसार अनपढ़ और अशिक्षित मुसलमानों को आवश्यक पदों पर केवल मुसलमान होने के कारण नियुक्त किया गया था|
बिद्नुर,उत्तर कर्नाटक का शासक अयाज़ खान था जो पूर्व में हिन्दू कामरान नाम्बियार था, उसे हैदर अली ने इस्लाम में दीक्षित कर मुसलमान बना दिया था। टीपू सुल्तान अयाज़ खान को शुरू से पसंद नहीं करता था इसलिए उसने अयाज़ पर हमला करने का मन बना लिया। अयाज़ खान को इसका पता चला तो वह मुम्बई भाग गया।
टीपू बिद्नुर आया और वहाँ की सारी जनता को इस्लाम कबूल करने पर विवश कर दिया था। जो न धर्म बदले उनपर भयानक अत्याचार किये गए।
कुर्ग पर टीपू साक्षात् राक्षस बन कर टूटा था।लगभग १०,००० हिन्दुओ को इस्लाम में बलात धर्म परिवर्तित किया गया। कुर्ग के लगभग १००० हिन्दुओ को पकड़ कर श्रीरंग पट्टनम के किले में बंद कर दिया। उन लोगो पर इस्लाम कबूल करने के लिए अत्याचार किया गया। बाद में अंग्रेजों ने जब टीपू को मार डाला तब जाकर वे कारागार से छुटे और फिर से हिन्दू बन गए।
कुर्ग राज परिवार की एक कन्या को टीपू ने बलात मुसलमान बना कर निकाह तक कर लिया था। ( सन्दर्भ PCN राजा केसरी वार्षिक अंक १९६४)

विलियम किर्कपत्रिक ने १८११ में टीपू सुलतान के पत्रों को प्रकाशित किया था। जो, उसने विभिन्न व्यक्तियों को अपने राज्यकाल में लिखे थे।
* जनवरी १९,१७९० में जुमन खान को टीपू पत्र में लिखता हैं की, "मालाबार में ४ लक्ष हिन्दुओ को इस्लाम में शामिल किया हैं, अब मैंने त्रावणकोर के राजा पर हमला कर उसे भी इस्लाम में शामिल करने का निश्चय किया हैं।"
* जनवरी १८, १७९० में सैयद अब्दुल दुलाई को टीपू पत्र में लिखता हैं की, "अल्लाह की रहमत से कालिकत के सभी हिन्दुओ को इस्लाम में शामिल कर लिया गया हैं। कुछ हिन्दू कोचीन भाग गए हैं उन्हें भी धर्मान्तरित कर लिया जायेगा।"
* २२ मार्च १७२७ को टीपू ने अपने एक सेनानायक अब्दुल कादिर को एक पत्र लिखा की ,"१२००० से अधिक हिंदू मुसलमान बना दिए गए।"
* १४ दिसम्बर १७९० को अपने सेनानायकों को पत्र लिखा की, "मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन के साथ दो अनुयायी भेज रहा हूँ उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बंदी बना लेना और २० वर्ष से कम आयुवालों को कारागार में रख लेना और शेष सभी को पेड़ से लटकाकर मार देना।"
* टीपू के शब्दों में "यदि सारी दुनिया भी मुझे मिल जाए,तब भी मै हिंदू मंदिरों को नष्ट करने से नही छोडूंगा।"(फ्रीडम स्ट्रगल इन केरल)
* टीपू ने अपनी तलवार पर भी खुदवाया था ,"मेरे मालिक मेरी सहायता कर कि, में संसार से सभी काफिरों (गैर मुसलमान) को समाप्त कर दूँ !"
इस प्रकार टीपू के धर्मनिष्ठ तथ्य टीपू को एक जिहादी गिद्ध से अधिक कुछ भी सिद्ध नहीं करते।

* मुस्लिम इतिहासकार पी.एस.सैयद मुहम्मद केरला मुस्लिम चरित्रम में लिखते हैं की," टीपू का केरला पर आक्रमण हमें भारत पर आक्रमण करनेवाले चंगेज़ खान और तैमुर लंग की याद दिलाता हैं।"
ऐसे कितनेक ऐतिहासिक तथ्य टीपू सुलतान को एक धर्मान्ध,निर्दयी ,हिन्दुओं का संहारक सिध्द करते हैं। क्या ये हिन्दू समाज के साथ अन्याय नही है कि, हिन्दुओं के हत्यारे को हिन्दू समाज के सामने ही एक वीर देशभक्त राजा बताया जाता है , टाइगर ऑफ़ मैसूर की उपाधि दी जाती है, मायानगरी में इस आतंकी को सेनानी के रूप में प्रदर्शित कर पैसा कमाया जाता है , टीवी की मदद से "स्वोर्ड ऑफ़ टीपू सुलतान" नाम के कार्यक्रम ने तो घर घर में टीपू सुलतान को महान स्वतंत्रता सेनानी बना कर पंहुचा दिया है।
अगर टीपू जैसे हत्यारे को भारत का आदर्श शासक बताया जायेगा तब तो सभी इस्लामिक आतंकवादी भारतीय इतिहास के ऐतिहासिक महान पुरुष बनेगे।

इस लेख में टीपू के अत्याचारों का अत्यंत संक्षेप में विवरण दिया हैं।यदि इतिहास का यतार्थ विवरण करने लग जाये तो हिन्दुओ पर किये गए टीपू के अत्याचारों का वर्णन करते करते पूरा ग्रन्थ ही बन जायेगा। 
सबसे बड़ी विडम्बना मुसलमानों के साथ यह हैं कि, इन लेखों को पढ़ पढ़ कर दक्षिण भारत के विशेष रूप से केरल,आन्ध्र और कर्नाटक के मुसलमान उसकी वाह वाह कर रहे होंगे।जबकि सत्यता यह हैं टीपू सुलतान ने लगभग २०० वर्ष पहले उनके ही हिन्दू पूर्वजों को जबरन मुसलमान बनाया था और उसे वह गौरव समझते है।यही स्थिति कुछ कुछ पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमानों की हैं जो अपने यहाँ बनाई गई परमाणु मिसाइल का नाम गर्व से गज़नी और गौरी रखते हैं जबकि मतान्धता में वे यह तक भूल जाते हैं की उन्ही के हिन्दू पूर्वजों पर विधर्मी आक्रमणकारियों ने किस प्रकार अत्याचार कर उन्हें हिन्दू से मुसलमान बनाया था।वहा इनका जिहादी दृष्टिकोण उन कट्टरपंथीयो के विरुध्द जब तक नहीं खौलता तब तक इस्लाम की आड़ में स्वयं शिकार होते रहेंगे।

Sunday 21 December 2014

ईसाई-इस्लामी मत कोई धार्मिक नहीं !

इस्लाम के जन्म का अवतरण होने के लिए यहूदी-ज्यू लोगों पर रोमन साम्राज्यवादीयों का अत्याचार इन्क्विझिशन जिम्मेदार है !
इसा मसीह के जन्म के सौ वर्ष पूर्व जेरूशलेम पर सम्राट राजदत्त का राज्य था। सन ३२४ तक वेटिकन "वेद वाटिका" थी। बौध्द अर्थात वैष्णव यहाँ स्थापित थे। सन ५२६ ब्रिटेन राजघराने ने रोमन राजसत्ता अर्थात धर्मांतरण का स्वीकार किया और धर्म-अधर्म की आड़ में साम्राज्य विस्तार के लिए वधस्तम्भ का भय दिखाकर उस ही को पूजनीय बनाया। वास्तविकतः येशु कभी रोम गए ही नहीं थे।
रोमनों के अत्याचार से बचने पलायन कर चुके दमिश्क में इकठ्ठा हुए यहूदी लोगों के दुक्ख और अत्याचार को देखकर मोहम्मद पैगम्बर को ३५५ देवता स्थान का मक्का जो शैव बहुल धार्मिक-व्यावसायिक केंद्र था को सोश्यल इंजीनियरिंग की प्रेरणा मिली। एकेश्वरवाद का यह उद्देश्य केवल रोमन अत्याचार - साम्राज्य विस्तार रोकना मात्र था। उनके आक्रमण के पूर्व उनपर आक्रमण कर कबाइलियों को वेतन के रूप में लूट-अपहरण जो उनके अंगभूत लक्षण थे उसे छूट दी गई थी। वहीं आगे धर्माज्ञा बनी ? या बनाई इसपर टर्की में कुरान संशोधन के लिए समिती बनी है। उनका दावा है कि,अनेक आयत अपने स्वार्थ के लिए खलीफाओं ने अंतर्भूत किये है।
अर्थात ईसाई-इस्लामी मत कोई धार्मिक नहीं न ही धर्म ग्रंथ को कहा जाएं की वह धार्मिक है। इसलिए प्रथम प्रार्थना स्थल नष्ट करना अति आवश्यक ! अरबस्थान में प्रेषित के जन्मस्थान को ही ढहाया गया है।

बृहद भारत भूमि पर हुए आक्रमण-लूट-अपहरण-बलात्कार और सामाजिक विषमता धर्मांतरण का कारन बनी। यही कारन भारत खंड-खंड, देश विभाजन का कारन बना। १९१९-१९३५ के संविधान ने अल्पसंख्य शब्दोत्पत्ती कर वक्फ बोर्ड बनाया। डॉक्टर आंबेडकरजी के संविधान ने राष्ट्रीयता में विषमता नष्ट करने के स्पष्ट संकेत दिए है। उसे लागु किए बिना धर्म निरपेक्षता लागु नहीं। अर्थात जनगणना आयोग के संकेत तथा रफीक झकेरिया द्वारा लिखित पुस्तक के अनुसार, २०२१ में हिन्दू अल्पसंख्य होने का धोका टालने के लिए पूर्वाश्रमी हिंदुओ का शुद्धिकरण आवश्यक ! इसे धर्मांतरण कहनेवाले समान नागरिकता का अर्थात धर्म निरपेक्षता का आग्रह करे !

Wednesday 10 December 2014

विश्व योग दिवस २१ जून !

     
लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व कोडर ग्राम,वजीरगंज-गोंडा उत्तर प्रदेश में जन्मे महर्षि पतंजलि को शेषावतार कहा जाता है। महर्षि के जन्म पूर्व शरयु ने अपनी चंचलता का त्याग कर कोडर झील का रूप धारण किया था। गोंडिका नामक कन्या सूर्य को अर्ध्य दे रही थी उस समय उनका जन्म हुआ। ऐसी किंवदंती है।
श्री पतंजलि जन्मभूमि न्यास समिति ने केंद्र और राज्य सरकारों को बाइस बार अड़तालीस प्रस्ताव भेजे है परंतु,पर्यटन स्थल की श्रेणी नहीं मिली। 


  रत्नागिरी के निर्बंध बंदिवास में योगाभ्यासी,ग़दर क्रांतिकारी बाबाराव सावरकरजी के बंधू वीर विनायक दामोदर सावरकरजी ने "अखिल हिन्दू ध्वज" का निर्माण किया था। जो रा.स्व.संघ की जननी अखिल भारत हिन्दू महासभा का पक्ष ध्वज बनकर रहा है। कुछ संगठन इस ध्वज का स्वीकार करते है,प्रसार माध्यम भी इसकी महत्ता न जानते हुए उसे उनका ध्वज मानते है।इस ध्वज को योगगुरु बाबा रामदेव की राष्ट्रीय स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक,शिवाजी पार्क,दादर-मुम्बई आएं तब,अखिल भारत हिन्दू महासभा पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी के भतीजे स्वर्गीय विक्रमराव नारायणराव सावरकरजी ने उनके हाथ में अखिल हिन्दू ध्वज सौपकर योग का वैश्विक प्रसार करने का दायित्व सौपा था।

    इस अखिल हिन्दू ध्वज पर अंकित कुण्डलिनी की महत्ता विशद करते हुए वीर सावरकरजी ने कहा है," साधको को अलौकिक अतीन्द्रिय आनंद प्राप्त होता है।जिसे योगी कैवल्यानन्द कहते है।अद्वैती ब्रह्मानंद कहेंगे या भौतिक परिभाषा जाननेवाले केवल परमानंद कहेंगे। ...... किसी का विश्वास विशिष्ट अवतार पर,पैगम्बर पर,ग्रंथों पर या ग्रंथिक मतान्तरो पर हो या न हो चार्वाक,वैदिक,सनातनी,जैन,बौध्द,सिक्ख,ब्राह्मो,आर्य,इस्लाम आदि सभी धर्म पंथों को कुण्डलिनी मान्य है। ..... योगसाधना का विचार पूर्णतः विज्ञाननिष्ठ है और भारतवर्ष ने ही विश्व को प्रदान किया यह दान है। बंदिवास में मैंने योग की उर्जा का अनुभव किया है।" (सन्दर्भ :- हिन्दू ह्रदय सम्राट भगवान सावरकर ले.स्व.रा.स.भट )
        वीर सावरकर जी शक्ति और शांति का मार्ग दिखाते समय हिन्दू मतावलंबियों की अहिंसा,सहिष्णुता और दया की विकृति पर भी कोड़े बरसते है।श्रीमद भगवद्गीता में भगवान द्वारा प्राप्त ज्ञानपर चलनेवाले वह आधुनिक अर्जुन थे। " अत्याचारी,आक्रामको का शमन और दुर्बल एवं पीड़ित मनुष्यों के प्रति करुणा का व्यवहार, उनकी सेवा और उनके साथ हुए अन्यायों का निवारण और भूल का परिमार्जन ही सावरकर चिंतन का सार है।"
         सन १९२८ अगस्त में वीर जी ने ध्वज के विषय में लिखा, " कुंडलिनी का यह संकेत चिन्ह हिन्दू धर्म एवं हिन्दुराष्ट्र के वैदिक कालखंड से लेकर आज तक के और आज से लेकर युगांत तक के महत्तम ध्येय को सुस्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करेगा ; स्वस्तिक प्राचीन है,किन्तु मनुष्य निर्मित है।कुंडलिनी प्रकृति की देन है और वह शास्त्रीय तथा शास्त्रोक्त संकेत है।इसलिए कृपाण,कुण्डलिनी,स्वस्तिक अंकित ध्वज को ही हिन्दुध्वज माना जाए।कृपाण और कुंडलिनी से दो चिन्ह क्रमशः भुक्ति और मुक्ति ; शक्ति और शांति ; भोग तथा योग ; आचार-विचार,कर्म और ज्ञान, सत और चित,प्रवृत्ति और निवृत्ति इनके ही प्रतिक रूप है और उनमे सुचारू रूप से समन्वय बनाये रखनेवाले प्रतिक है।" ( सन्दर्भ :- मासिक जनज्ञान फरवरी १९९७ पृष्ठ २७ ले.स्व.बालाराव सावरकर )

योगाभ्यास करते समय ओमकार के उच्चारण को लेकर धर्मांध-अराष्ट्रीय लोगो ने फतवे तक निकाले थे। परंतु , कुरान शरीफ पारा १ सूरे बकर आयत १ में लिखा है- "अल्लाह के नाम से निहायत दयावान मेहरबान है , अलिफ-लाम-मीम "मौलाना अहमद बशीर M.A.कहते है ,उनको "हरुफे मुक्तआत" कहा जाता है।
अरबी व्याकरण के अनुसार,लाम अक्षर ,'वाउ' अक्षर में बदल जाता है। तब अलिफ-लाम-मीम मिलकर अलिफ-वाउ-मीम बन जाता है। अलिफ + वाउ मिलकर "ओ" का उच्चारण में मीम मिलाने पर अलिफ+वाउ +मीम = ओम बन जाता है। ॐ जो,ईश्वर का सर्व श्रेष्ठ मुख्य नाम है। अर्थात कुरान में सिपारे या सूरत के प्रारम्भ में कई जगह इसका उल्लेख है। 

Monday 8 December 2014

हैपी ख्रिसमस-न्यू ईयर कहेंगे ?

गांधारी के श्राप से बचने यादव कुल सदस्य बलराम दाऊ के साथ रोम गए थे। ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण है। येशु ख्रिस्त के जन्म के १०० वर्ष पूर्व राजा राजदत्त की सत्ता इस्त्रायल में थी।गुजराथ राज्य के काठेवाड प्रांत के "पालिताना" निवासियों ने वहा व्यापार की वसाहत (कॉलोनी) बसाई थी।जो आज "पैलेस्टाईन" है।येशु काले रंग का ज्यू था।काले समुद्र के निकट गुंफा में मिले ग्रन्थ के अनुसार,ज्यू पंथ का निर्माण 100 वर्ष पूर्व हुवा और येशु इस ही पंथ में पैदा हुए।ऑस्ट्रेलियन धर्मगुरु श्रीकृष्ण को येशु के अध्यात्मिक आदर्श मानते है।परंतु,इसका प्रयोग वह धर्मांतरण के लिए करते आ रहे है।
ऐसा कहा जाता रहा है बाल येशु, हत्या से बचने के लिए शेफर्ड (चरवाह) के साथ बृहत्तर भारत में प्रविष्ट हुए।जगन्नाथ पुरी के राजपुत्र के आग्रह पर सम्राट ने आश्रय देकर सुरक्षित रखा,वेद अध्ययन करवाया। वापस लौटते हुए लद्दाख के हेमीस बुध्द मठ में त्रिपिटक का भी अध्ययन येशु ने किया।
जेरुशलेम जाकर उसने श्रीमद् गीता प्रधान धर्म का विचार प्रस्तुत किया।रोमन साम्राज्यवादी येशु के बढ़ते अध्यात्मिक संगठन और श्रीमद भगवद्गीता के आशय से डरकर राज्यक्रांति रोकने के लिए पकड़कर येशु को लकडे के वधस्तंभ पर किल से ठोंक दिया। येशु और उसके शिष्या की कब्र कश्मीर में होने की बात भी प्रकट हुई है।
मात्र जहा रोम में येशु कभी नहीं गए वहा वही पूर्व वैदिक-बौध्द रोमन लोग सन ३२४ पश्चात्,यहूदीयो को भी वधस्तंभ का भय दिखाकर,इन्क्विझिशन द्वारा तड़पाकर मारे या धर्मान्तरण कर येशु के वधस्तंभ को आराध्य बनाकर रोम लेकर गए।रोम में वैदिक-बुध्द मत संयुक्त रूप से अभिन्न रह रहे थे।वेटिकन श्री शंकराचार्य जी की वेद वाटिका थी।वह नष्ट हुई। सन ५२६ में रोमनो ने बृहद ब्रिटन पर आक्रमण किया।राजसत्ता को धर्मान्तरित कर राष्ट्र को ख्रिश्च्यन बनाया।ब्रिटिश राज ने वेटिकन सेना के रूप में विश्व पर सत्ता स्थापित की, अमेरिका पर सोलहवी शताब्दी में झंडा लहराया।अब रोमन साम्राज्यवादी ब्रिटन-अमेरिका की आड़ में विश्व पर धार्मिक-आर्थिक-सांस्कृतिक-सामरिक कब्ज़ा बनाये है।वधस्तंभ पर लटकाया येशु (प्रेत) पुजनीय बनाकर रोमन लोमडिचाल चल रहे है।हिन्दू राज्यसत्ता का अभाव हमें कहा ले जायेगा ? रोमन संस्कृति की आधुनिकता से बहन-बच्चिया बाहर निकले।ख्रिसमस मनाने के लिए सरकार बलात्कार के विरोध में उठ रही चीत्कार कुचल रही है।फिर भी ये संस्कृति हिन कुछ आंदोलक कल हैपी ख्रिसमस-न्यू ईयर कहेंगे ?

See it Link :
http://aajtak.intoday.in/story/female-student-katherine-oconnor-arrested-for-dressing-up-as-pope-naked-from-waist-down-and-handing-out-condoms-1-730385.html

Sunday 7 December 2014

मुसलमानों ने साक्ष दिए है,ऐसे मंदिर को "बाबरी" का कलंक लगाकर ध्वस्त करना क्या यहीं हिंदुत्ववाद है ?

 प्रभु श्रीराम की स्मृती में उनके पुत्र लव कुश ने श्रीराम जन्मस्थान पर ८४ कसोटी के ८४ स्तंभ लगाकर भव्य मंदिर बनाया था। जो,रामकोट नामसे भी जाना जाता था। नंदवंश के कालतक श्रीराम जन्मस्थान मंदिर का वैभव अक्षुण्ण बना रहा। ईसापूर्व तीनसौ वर्ष यूनानी आक्रमण आरंभ हुए। सिकंदर की जगज्जेता बनने की इच्छा पंजाब के १७ गणराज्यों ने संगठीत प्रत्याक्रमण के साथ धराशाई की। मिनेंडर ने मार्ग बदलकर आक्रमण किया और वैष्णव मंदिर ध्वस्त करते हुए वैष्णव पंथ के अंगभूत पंथ को अलग किया। हिंदुत्व और भारतीयता को नष्ट करने के लिए सभी पंथ का मूल इक्ष्वाकु कुल के श्रीराम के मंदिर को ध्वस्त करना आवश्यक समझा। हिन्दुओं के प्रबल विरोध के पश्चात भी मंदिर ध्वस्त हुआ। उपरोक्त हार के कारण सभी हिन्दू अपने भेद नष्ट करके संगठीत होकर तीन महीने के संघर्ष के पश्चात शुंग वंशीय राजा द्युमत्सेन ने मिनेंडर को परास्त किया और मार गिराया। फिर भी कुषाणों के आक्रमण बारंबार होते रहे,इसलिए श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर बनाने में बाधा आती रही।

ईसापूर्व सौ वर्ष महाराजा विक्रमादित्य के बड़े भाई भर्तृहरि ने राज्य छोड़कर संन्यास लिया,गुरु गोरखनाथ महाराज के शिष्य बने। विक्रमादित्य महाराज ने श्रीराम जन्मस्थान के अवशेष खोदकर वहां मंदिर का पुनर्निर्माण किया। इसके स्तम्भों का उल्लेख 'वंशीय प्रबंध' तथा 'लोमस रामायण' में मिलता है। प्रभु श्रीराम की श्यामवर्ण मूर्ति थी। इस प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा राम नवमी को उत्सव के साथ की गई।

इस्लाम के उद्भव के कारण अनेक आक्रमण बृहत्तर भारत ने झेले। सन १०२६ सोरटी सोमनाथ मंदिर पर महमूद गझनवी ने आक्रमण कर ध्वस्त किया तो,उसके भांजे सालार मसूद ने १०३२ में 'सतरखा' (साकेत) जीता और अयोध्या पर आक्रमण किया। मंदिर ध्वस्त करने के कारण अनेक राजाओं ने मिलकर उसे भागने पर विवश किया। राजा सुहेलदेव पासी ने उसका पीछा किया और सिंधौली-सीतापुर में सय्यद सालार मसूद के पांच सिपहसालार मार गिराए। वहीं उनको दफनाकर पासी राजा मसूद के पीछे पड़ा। मात्र अब इनकी कब्र को मजार कहकर " पंचवीर " कहा जा रहा है।

मसूद के जीवनीकार अब्दुर्रहमान चिश्ती ने लिखा है, सुहेलदेव ने अनेक राजाओं को पत्र लिखा था। य़ह मातृभूमी हमारे पूर्वजों की है और यह बालक मसूद हमसे छिनना चाहता है।जितनी तेजी से हो सके आओ,अन्यथा हम अपना देश खो देंगे। यह पत्र सालार के हाथ लगा था और भागने की तयार था।पासी राजा के नेतृत्व में लडने १७ राजा सेना लेकर आए।इनमें राय रईब,राय अर्जुन,राम भिखन,राय कनक,राय कल्याण,राय भकरू,राय सबरू,राय वीरबल,जय जयपाल,राय श्रीपाल,राय हरपाल,राय प्रभू,राय देव नारायण और राय नरसिंह आदी पहूंचे।बहराइच से ७ कोस दूर प्रयागपुर के निकट घाघरा के तटपर महासमर हुवा।चारों ओर से घेरकर, रसद तोडकर कई दिनों के युध्द पश्चात् १४ जून १०३३ को सालार मसूद मारा गया।चूनचूनकर मुसलमान लुटेरों को मारा गया।सालार मसूद को जहां दफनाया उस कब्र को अब मजार कहकर मुसलमान धार्मिक प्रतिष्ठा दे रहे है।

इस ध्वस्त मंदिर को गढवाल नरेश गोविंदचंद्र शैव (१११४-५४) ने ८४ कसोटी के पत्थर भेजकर अपने सामंत कनौज के नयचंद द्वारा बनवाया।इस मंदिर में दर्शन करने गुरूश्री नानकदेव बेदी अपने मुसलमान शिष्य मरदाना के साथ आएं थे।इस मंदिर का व्यवस्थापन श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाडे के पास था तब मीर बांकी ने मंदीर पर आक्रमण किया था।१,७२,००० हिंदू मंदिर बचाते मारे गए तब, निर्मोही आखाडे के पुजारी श्यामानंद ने मुर्तीयां शरयु नदी के लक्ष्मण घाट के निचे छुपा दी थी।मीर बांकी ने मंदिर प्रवेश को रोक रहे श्यामानंद का शिर कांटकर प्रवेश किया और बुतशिकन का ओहदा पाने से वचित मीर ने तोप से मंदिर ध्वस्त किया।इस मलबे से चुनकर स्तंभोंपर जो वास्तू खडी की उसमें कभी नमाज नहीं हो सकी।कयोंकि,स्तंभोंपर बुत-मुर्तीयां थी।
७८ बल्वों के साथ मंदिर का अधिपत्य निर्मोही आखाडे के पास रहा।२४ दिसंबर १९४९ को मंदिर कलंकमुक्त हुआ।मंदिर में मुर्तीयां रखने का आरोप छह निर्मोहीयों पर लगा,निर्दोष छुटे।
हिन्दू महासभा १९४९ अयोध्या आन्दोलन के पश्चात् यह मंदिर न्यायालय संरक्षित है।१९५०-५१ हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा गोपाल सिंग विशारद द्वारा चली ३ / १९५० दिवाणी, न्यायालयीन कार्यवाही में अयोध्या परिसर के १७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने कोर्ट में दिए हलफनामे का आशय,
*"*हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है।जिसे शाही हुकूमत में शहेंशाह बाबर बादशाह हिन्द ने तोड़कर बाबरी बनायीं थी।इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया।बराबर लड़ते रहे और इबादत करते आये है।बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए ७७ बल्वे हुए।सन १९३४ से इसमें हम लोगो का जाना इसलिए बंद हुवा की,बल्वे में तीन मुसलमान क़त्ल कर दिए गए और मुकदमे में सब हिन्दू बरी हो गए।कुरआन शरीफ की शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज नहीं पढ़ सकते क्योंकी,इसमें बुत है।इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है की,जो यह राम जन्मभूमि और बाबरी का झगडा है यह जल्द ख़त्म करके इसे हिन्दुओ को दिया जाये।" वली मुहमद पुत्र हस्नु मु.कटरा ; अब्दुल गनी पुत्र अल्ला बक्श मु.बरगददिया ;अब्दुल शफुर पुत्र इदन मु.उर्दू बाजार ; अब्दुल रज्जाक पुत्र वजिर मु.राजसदन ; अब्दुल सत्तार पुत्र समशेर खां मु.सैय्यदबाड़ा ;शकुर पुत्र इदा मु.स्वर्गद्वार ; रमझान पुत्र जुम्मन मु.कटरा ; होसला पुत्र धिराऊ मु.मातगैंड ; महमद गनी पुत्र शैफुद्दीन मु.राजा का अस्तंबल ; अब्दुल खलील पुत्र अब्दुरस्समद मु.टेडी बाजार ; मोहमद हुसैन पुत्र बसाऊं मु.मीरापुर डेरा बीबी ; मुहम्मद जहाँ पुत्र हुसैन मु.कटरा ; लतीफ पुत्र अब्दुल अजीज मु.कटरा ; अजीमुल्ला पुत्र रज्जन मु.छोटी देवकाली ; मोहम्म्द उमर पुत्र वजीर मु.नौगजी ; फिरोज पुत्र बरसाती मु.चौक फ़ैजाबाद ; नसीबदास पुत्र जहान मु.सुतहटी

* टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी की अर्जुनसिंग को दी साक्ष*,"मस्जिद में मूर्ति नहीं होती इसके स्तंभों में मुर्तिया है।मस्जिद में मीनार और जलाशय होता है वह यह नहीं है।स्तंभों पर लक्ष्मी,गणेश और हनुमान की मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं गयी है।"

* कुरआन को समझनेवाले सुलतानपुर के विधायक मुहम्मद नाजिम ने मुसलमानों को किया आवाहन :- "बाबरी मस्जिद के मुतालिक मुसलमानों के बहुत से ऐसे बयानात मैंने अखबारात में पढ़े है। किसी ने इस काम को करनेवालों को जालिम कहां है। किसी ने फसादी और किसीने तो,बढकर गुंडा कहा है। यह उन मुसलमानों के बयानात है जो,महमूद गजनवी के इस जुमले को सदैव गर्व से दुहराया करते है कि,बुतपरस्त नहीं बल्कि बुतशिकन हूँ। यह बात आज तक मेरी समझ में नहीं आयी कि,जिस काम को करके एक मुसलमान गाजी का लक़ब पा सकता है उसी काम को करके एक हिन्दू गुंडा कैसे हो सकता है ? अभी भी वक्त है कि,हिन्दुस्थान के कुछ समझदार हिन्दू और मुसलमान इस काम को हाथ में लेकर मोहब्बत,रबादारी और इंसानियत को दरमियान में लेकर एक दूसरे की इबादतगाहों को वापस करने की बात सोचे। इससे हमारे सभी भाई जो दोनों कौमों के मध्य खंदक बना गए है ,वह पट जाएगी। "
माननीय न्यायालय का आदेश है की ,*"मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था जैसी है* वैसे *ही सुरक्षित रहे और सेवा,पूजा तथा उत्सव जैसे हो रहे थे वैसे ही होते रहेंगे।*"
पक्षकार हिन्दू महासभा की मांग पर १९६७ से १९७७ के बिच प्रोफ़ेसर लाल के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग के संशोधक समूह ने श्रीराम जन्मभूमि पर उत्खनन किया था। इस समिती में मद्रास से आये
*संशोधक मुहम्मद के.के.भी आएं थे, वह लिखते है कि,*
,"वहा प्राप्त स्तंभों को मैंने देखा है। JNU के इतिहास तज्ञोने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर अन्य संशोधन के पहलुओ को दबा दिया है।मुसलमानों की दृष्टी में मक्का जितना पवित्र है उतनी ही पवित्र अयोध्या हिन्दुओ के लिए है।मुसलमानों ने राम मंदिर के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौपनी चाहिए।उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने के लिए रची गयी इटोंकी पंक्तिया,दो मुख के हनुमान की मूर्ति,विष्णु,परशुराम आदि के साथ शिव-पार्वती की मुर्तिया उत्खनन में प्राप्त हुई है।"
भाजप-विहिंप ने,रामानंदीय निर्मोही आखाड़े का श्रीराम जन्मस्थानपर १९४९ पूर्व से अधिकार होने की साक्ष देनेवाले देवकीनंदन अग्रवाल को "रामसखा" बनाकर अपनी कब्जे की दृष्ट बुध्दी का परिचय देने के पश्चात् रुकना चाहिए था। सरकारी वेतन से कार्यरत चार पुजारी-एक रिसीव्हर और दर्शन-भोग-उत्सव हो रहे मंदिर के श्री एन डी तिवारी-बुटासिंग के हाथों शिलान्यास हुआ है। मुसलमानों ने साक्ष दिए है। कुराण भी ऐसे स्थानपर मस्जिद को अमान्य करता है। ऐसे मंदिर को राजनीतिक-आर्थिक षड्यंत्र के लिए "बाबरी" का कलंक लगाकर राष्ट्रद्रोहियों को संगठीत करना और मंदिर ध्वस्त कर देश-विदेश के हिन्दुओं को सांप्रदायिक दंगे में झोंकना क्या यहीं हिंदुत्ववाद है ? इनकी राजनीती के कारण बने बनाये समझौते नष्ट हो रहे है। श्रेय-कब्ज़ा-बटवारा की राजनीती कर रही भाजप-विहिंप के कारन मुस्लिम पक्ष सबल होकर निर्णय बदल रहा है। इसके लिए संसद में कानून का कोई औचित्य नहीं !