Monday 14 December 2015

जन्नत में कुंवारी और सुन्दर 72 हूरें,गिलमा का क्या काम है ? कुरान-हदीस की समीक्षा-तुर्की सरकार


कुरान में मुसलमानों से वादा किया गया है कि मरने के बाद उनको जन्नत में कुंवारी और सुन्दर 72 हूरें दी जाएँगी .और साथ में सुन्दर अल्पायु के लडके भी दिए जायेंगे जिन्हें "गिलमा " कहा जाता .क्योंकि मुसलमान लड़कों के भी शौक़ीन होते हैं .वह जन्नत में जाये बिना ही यहीं अपनी इच्छा पूरी करते आये हैं .इसी के बारे में जानकारी दी जा रही है





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यदि कोई व्यक्ति दुर्भावना रहित निष्पक्ष रूप से इस्लामी साहित्य ,मुस्लिम शासकों का इतिहास और मुसलमानों आचार विचार का गंभीर अध्यन करने पर आसानी से इस बात का निष्कर्ष निकला जा सकता ,कि है हरेक कुकर्म और अपराध का सम्बन्ध इसी गलत धार्मिक शिक्षा से है .ऐसा ही एक दुर्गुण है जो इस्लाम के साथ ही सम्पूर्ण विश्व में फ़ैल गया है ,जिसको समलैंगिकता (Homo sexuality ) भी कहते हैं .और दूसरा दुर्गुण अफगानिस्तान ,पाकिस्तान और में मौजूद है जिसे "बच्चा बाजी " कहा जाता है .इसी तरह भारत में हिजड़ों कि प्रथा भी मुस्लिम शासक ही लाये थे .जिनको "मुखन्निस(Arabic مخنثون "effeminate ones") कहते हैं .यह ऐसे लडके या पुरुष होते हैं ,जिनका पुरुषांग काट दिया जाता ताकि वह स्त्री जैसे दिखें .और जब वह हरम में काम करें तो वहां की औरतोंसे कोई शारीरिक सम्बन्ध नहीं बना सकें .समलैंगिकता इस्लाम से पूर्व और इस्लाम के बाद भी किसी न किसी रूप से मुस्लिम देशों में मौजूद है .इसके लिए हमें कुरान ,हदीस और इतिहास का सहारा लेना जरुरी है .देखिये -
1-इस्लाम से पूर्व समलैगिकता
इस्लाम से पहिले अरब के लोग सुन्दर लड़कों के साथ कुकर्म करते थे ,यह खुद कुरान से साबित होता है ,जो कहती है
"जब हमारे फ़रिश्ते लड़कों के रूप में लूत( एक नबी ) के पास गए ,तो वह उन लड़कों के बारे में चिंतित हो गया .और खुद को बेबस समझाने लगा ,क्योंकि उसकी जाति लोग लडके देखते ही उसके घर की तरफ दौड़े आ रहे थे .क्योंकि वह लोग हनेशा से ऐसा कुकर्म करते रहते थे .लूत ने उन से कहा हे लोगो यह मेरी बेटियां हैं जो लड़कों से अधिक उपयोगी हैं और बिलकुल पाक हैं ,तुम लड़कों से साथ कुकर्म करके मुझे लज्जित नहीं करो .क्या तुम में कोई भला आदमी नहीं है ,वह बोले हमें तेरी बेटियों से कोई मतलब नहीं .तुम तो जानते हो की हमारा असली इरादा क्या है "
सूरा -हूद 11 :77 से 79
"लूत ने कहा तुम अपनी कम वासना की पूर्ति के लिए लड़कियों को छोड़कर लड़कों के पास जाते हो "सूरा-अल आराफ़ 7 :80
2-जन्नत में लडके मिलेंगे
आपको यह बात जरुर अजीब लगेगी कि एक तरफ कुरान लड़कों के साथ दुराचार को बुरा कहती है ,और दूसरी तरफ लोगों को जन्नत में सुन्दर लडके मिलने का प्रलोभन देती है .जन्नत के इन लड़को को "गिलामाغِلمانُ " कहा गया है .कुरान में इनका ऐसा वर्णन है .
" और उनके चारों तरफ लड़के घूम रहे होंगे ,वह ऐसे सुन्दर हैं ,जैसे छुपे हुए मोती हों "सूरा -अत तूर 52 :24
"وَيَطُوفُ عَلَيْهِمْ غِلْمَانٌ لَّهُمْ كَأَنَّهُمْ لُؤْلُؤٌ مَّكْنُونٌ" 52:24
"वहां ऐसे किशोर फिर रहे होंगे जिनकी आयु सदा एक सी रहेगी (immortal youths ) सूरा -अल वाकिया 56 :17
इन लड़कों की हकीकत कुरान की इस आयत से पता चलती है ,जो कहती है कि,
"ऐसे पुरुष जो औरतों के लिए अशक्त हों (who lack vigour ) सूरा -नूर 24 :31
बोलचाल की भाषा में हम ऐसे पुरुषों नपुंसक या हिजड़ा (Eunuchs ) कहते हैं . मुस्लिम शासक कई कई औरते रखते थे ,और हरम की रक्षा के लिए हिजड़े रखते थे .जिन्हें "खोजा सरा" कहा जाता था .रसूल की हरम में भी कई औरतें थी .इसके लिए हिजड़ों की जरूरत होती थी .यह बात इन हदीसों से पता चलती है .सभी प्रमाणिक हदीसें हैं .
3-रसूल हिजड़े रखते थे .
अपने हरमों में हिजड़ों को रखना इस्लाम की पुरानी परंपरा है .और रसूल के घर में भी हिजड़े रहते थे ,और कभी रसूल खुद हिजड़े खरीदते थे ,जो इन हदीसों और सीरत से पता चलता है ,
"अमीरुल मोमिनीन आयशा ने कहा कि एक हिजड़ा रसूल के पास आता था .और एक दिन जब रसूल घर में घुसे तो उनकी पत्नियाँ औरतों के बारे में चर्चा कर रही थी .कि जब औरत आगे बढाती है तो चार गुनी और पीछे चलती है तो उनका पेट आठ गुना निकलता है .रसूल बोले मुझे इस बात पर विश्वास नहीं ,शायद यह हिजड़ा अधिक जानता हो . तब औरतों ने उस हिजड़े से पर्दा कर लिया .
Narrated Aisha, Ummul Mu'minin: A mukhannath (eunuch) used to enter upon the wives of Prophet . They (the people) counted him among those who were free of physical needs. One day the Prophet entered upon us when he was with one of his wives, and was describing the qualities of a woman, saying: When she comes forward, she comes forward with four (folds in her stomach), and when she goes backward, she goes backward with eight (folds in her stomach). The Prophet said: Do I not see that this (man) knows what here lies. Then they (the wives) observed veil from him.
Sunan Abu-Dawud, Book 32, Number 4095:
4-रसूल ने हिजड़ा ख़रीदा
अरब में इस्लामी कल में गुलामों का बाजार लगता था ,और एक दिन जब रसूल गुलाम खरीदने गए तो उन्हें एक हिजड़ा मिला जिस का वर्णन सीरत ( मुहम्मद की जीवनी ) में इस तरह मिलता है
"एक बार रसूल बाजार गए तो उनको वहां "जाहिर "(एक हिजड़ा ) मिल गया ,जिसे रसूल पसंद करते थे .तभी रसूल ने जाहिर को पीछे से आकार पकड़ लिया .जाहिर बोला मुझे छोडो ,तुम कौन हो ,रसूल बोले मैं गुलामों का व्यापारी हूँ ,यानि गुलाम खरीदने वाला हूँ .जब जाहिर को पता चला कि यह रसूल हैं ,तो वह रसूल कि छाती से और जोर से चिपट गया "
One day, Muhammad went to the market, there he found Zahir, whom he liked, so he hugged him from behind. Zahir said: let go of me, who are you? Muhammad told him: I'm the slave trader (literally, I'm the one who buys the slaves), and refused to let go of him so when Zahir knew it was Muhammad, he drew (stuck) his back closer to Muhammad's chest.
فى يوم خرج محمد إلى السوق فوجد زاهرا وكان يحبه فأحتضنه من الخلف
فقال له زاهر اطلقنى من انت؟ فقال له محمد انا من يشترى العبيد ورفض ان
يطلقه فلما عرف زاهر أنه محمد صار يمكن ظهره من صدر محمد
السيرة الحلبية ج 3 ص 441 وفتحي رضوان في (الثائر الأعظم) ص 140
Al Seera Al Halabya (Muhammad's Biography) by Al Halabya, volume 3, p. 441 and Fathy Rdwan in his book Al Tha'er al A'azam (The greatest rebel)
5-गुलाम लड़कों का काम
गुलाम लड़कों (slave boys ) यानी गिलमा से कई तरह के काम कराये जाते है ,जिनमे एक के बारे में इस हदीस में लिखा है ,
"अनस बिन मलिक ने कहा कि जब भी रसूल शौच के लिए जाते थे ,तो मैं उनके साथ रहता था .और मदद के लिए एक लड़का पानी से भरा बर्तन रखता था .ताकि वह पानी से रसूल के गुप्त अंगों को धो सके "
"وروى أنس بن مالك :
كلما رسول الله ذهب للرد على المكالمة من الطبيعة، وأنا مع صبي آخر يستخدم لمرافقته مع بهلوان كامل من الماء. (وعلق هشام "، حتى انه قد غسل فرجه معها".)
Narrated Anas bin Malik:
Whenever Allah's Apostle went to answer the call of nature, I along with another boy used to accompany him with a tumbler full of water. (Hisham commented, "So that he might wash his private parts with it.")
(Sahih Al-Bukhari, Volume 1, Book 4, Number 152; see also Numbers 153-154
6-बच्चा बाजी
बच्चा बाजी(Pederasty) ,यह इस्लाम का एक मनोरजन है ,इसमे छोटे छोटे लड़कों या तो खरीद कर या अगवा करके उठाव लिया जाता है .फिर उनको लड़कियों के कपडे पहिना कर नाच कराया जाता है .और नाच के बाद उनके साथ कुकर्म किया जाता है .कभी कभी ऐसे लड़कों को खस्सी करके (Castrated ) हिजड़ा बना दिया जाता है .यह इस्लामी परम्परा अफगानिस्तान ,सरहदी पाकिस्तान में अधिक है .इस कुकर्म के लिए 9 से 14 साल के लड़को को लिया जाता है .अफगानिस्तान में गरीबी और अशिक्षा अधिक होने के कारण वह आदर्श इस्लामी देश है .इसलिए वहां बच्चा बाजी एक जायज मनोरंजन है .विकी पीडिया में इसका पूरा हवाला मिल सकता है ,इसकी लिंक दी जा रही है .
http://en.wikipedia.org/wiki/Bacha_Bazi

अधिक जानकारी के लिए यू ट्यूब से एक लिंक दी जा रही है ,
Homosexual Pedophilia in Afghanistan: Bacha Bazi
http://www.youtube.com/watch?v=P1BNeXTLHoY

7-मुस्लिम शासकों ने हिजड़े बनाये
अरब लोगों में गिलमा यानी Salve Boys रखने की पहुत पुरानी परम्परा है .इसे इज्जतदार होने की निशानी समझा जाता था .अमीर उन गिलमा लड़कों के साथ कुकर्म किया करते थे .कुरान में गिलमा के बारे में सुन्दर लडके कहा गया है .लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि गिलमा लडके हिजड़े होते हैं ,जिन्हें कम आयु में ही Castrated करके हिजड़ा बना दिया जाता है .इसके बारे में प्रमाणिक और विस्तृत जानकारी खलीफा अल रशीद और खलीफा अल अमीन के इतिहास से मिलती है .जिसे सन 1948 में लन्दन से प्रकाशित किया गया था किताब का नाम "Hitti PK (1948) The Arabs : A Short History, Macmillan, London, p. 99 उसी से यह अंश लिए जा रहे हैं .दसवीं सदी ने खलीफा अल मुकतदिर (908 -937 ) ने बगदाद में अपने हरम में रखने के लिए 11 हजार लड़कों को हिजड़ा बनवाया ,जिनमे 7 हजार हब्शी और 4 हजार लडके ईसाई थे .( पेज 174 -175 ) इसका एक उद्देश्य तो उनके साथ कुकर्म करना था .और दूसरा उदेश्य पराजित लोगों को अपमानित करना भी था .
बाद में यही काम भारत में आनेवाले हमलावर मुस्लिम शासकों ने भी किया ,जैसे जब बख्तियार खिलजी ने बंगाल पर हमला किया था ,तो उसने बड़े पैमाने पर 8 से 10 साल के हिन्दू बच्चों को हिजड़ा बना दिया था .बाद में मुगलों कि हुकूमत में (1526 -1799 ) में भी हिजड़े बनाए जाते रहे .इसका वर्णन "आईने अकबरी : में भी मिलता है .इसमे लिखा है अकबर ने 1659 में करीब 22 हजार राजपूत बच्चों को हिजड़ा बनवाया .बाद में जहाँगीर ने और औरंगजेब ने भी इस परंपरा को चालू रखा .ताकि हिन्दू वंशहीन हो जाएँ .इस से पहले सुल्तान अला उद्दीन खिलजी ने 50 हजार और मुहम्मद तुगकक ने 20 हजार और इतने ही फिरिज तुगलक ने भी हिजड़े बनवाये थे .
यहांतक कुछ ऐसे भी हिजड़े थे जो दिल्ली के बादशाह के सेनापति भी बने ,जैसे अल उद्दीन का सेनापति "मालिक काफूर " हिजड़ा था .और कुतुबुद्दीन का सेनापति "खुसरू खान " भी हिजड़ा ही था .महमूद गजनवी और उसके हिजड़े गुलाम के "गिलमा बाजी" (homo sexual ) प्रेम यानि कुकर्म (Sodomy ) को इकबाल जैसे शायर ने भी आदर्श बताया है .क्योंकि यह कुरान और इस्लाम के अनुकूल है ? क्या कुरान-हदीस में इस लेखन को समाविष्ट किया गया है ? क्या तुर्की सरकार ने इसलिए पांच धर्माचार्यो की समीक्षा समिती गठित की है ?(नोट -लेख का अंतिम भाग सारांश रूप में है ,पूरा विवरण अंग्रेजी में दी गयी साईट में देखें )
सभी देशभक्त और धर्मप्रेमी ,किसी प्रकार के झूठे प्रचार में नहीं फंसें .इस्लाम को ठीक से समझें .आने वाले खतरों से सचेत होकर देश धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो !  संविधान विरोधी धार्मिक आज्ञा के अनुसार कमलेश को इनाम लगाकर मारने घोषणा पर सरकार कोई ऐक्शन नहीं लेगी तो,देश का हिन्दू जाती-पंथ-भाषा-दलगत राजनीती त्यागकर राष्ट्र संस्कृती विरोधियोंको पाकिस्तान की सीमा तक छोड़ने आएंगे !
http://islamic-slavery.blogspot.com/

http://www.faithfreedom.org/…/islamic-slavery-part-10-sex-

Friday 22 May 2015

मीम पार्टी चा राष्ट्रद्रोही ओवैसी,राष्ट्रध्वजा वरील धर्मचक्र काढून चांदतारा लावतोय.

 ७ ओगस्ट १९९४ लंडन,"विश्व इस्लामी संमेलन" संपन्न झाले."वेटिकनच्या धर्मसत्ता पध्दतीच्या आधारावर "निजाम का खलीफा"ची स्थापना आणि  इस्लामी राष्ट्रांचे एकीकरण या प्रस्तावावर सहमत झाले !" संदर्भ २६ ओगस्ट १९९४ दैनिक अमर उजाला लेखक शमशाद इलाही अंसारी

केम्ब्रिज विद्यालय लंडन मध्ये प्रा.चौधरी रहमत अली याने १९३३ मध्ये "मुस्लिम ब्रदर हुड" हि अलगाववादीच नाही तर,अखंड पाकिस्तानवादी / विश्व इस्लामवादी पाया रोवला. जिन्नाह ने २६ मार्च १९४० लाहोर अधिवेशनात स्वीकार केलं कि,त्याच्या योजनेनुसार १० मुस्लिम राज्य बनवून ब्रिटीश इंडिया ला " दिनिया " बनवायचे आहे. राजस्थान मध्ये मुईनिस्तान, दक्खन मध्ये उस्मानिस्तान,मोपिलास्तान आदि अन्य मुस्लिम राज्यांची गुप्त योजना त्याच्या डोक्यात होती. संविधान सभेत मुस्लिम लीग चे पूर्वाश्रमीचे कांग्रेसी नेता चौ.खली कुज्जमा याने तर लाहोर जनसभेत म्हटलंय कि, " मुसलमानों के भाग्य में समस्त भारत का शासन करना लिखा है ! पाकिस्तान, मुसलमानों की अंतिम मांग नहीं है.किन्तु, वह तो समस्त इस्लामी जगत को एक महान राष्ट्र बनाने के लिए पहला कदम है !"

 अल्पसंख्या २७% या आधारपर ३३% भू भागाचा स्वतंत्र देश मागणार्या मुसलमानांना पूर्णपणे पाकिस्तानात नि पाकिस्तानातील हिंदूंना शेष भारतात आणण्याची अदलाबदलीचा डॉक्टर आंबेडकर-लियाकत अली समझौता झाल्यानंतर नेहरूंनी त्याला केराच्या टोपलीत फेकले. त्यानंतर ,२६ ऑक्टोबर १९४७ ला ६६७ राष्ट्रिय मुसलमानांनी पंतप्रधान नेहरूची भेट घेवून पाकिस्तान समर्थक मुसलमानांना निष्कासित करण्याची मागणी केली होती.तरीही मुसलमान आश्रयार्थींना मतदार बनवून ठेवण्याची नेहरू-गाझीची अखंड पाकिस्तान ची कुटनिती कशी फलीभूत होत गेली ?
लाहोर मधून प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' मध्ये अलीगढ मुस्लिम विद्यालय  प्रा.कमरुद्दीन खान चे एक पत्र विभाजानोत्तर प्रकाशित झालं होत.त्याचा उल्लेख पुणे येथील दैनिक ' मराठा ' आणि दिल्ली मधील "ओर्गनायजर" नी २१ ओगस्ट १९४७ ला प्रकाशित केलं होत.धार्मिक अल्प्संख्यांकतेच्या जनसंख्येच्या प्रमाणात अखंड भारत भौगोलिक विभाजना नंतर देखील शेष भारतावर देखील मुसलमानांची कशी गिधाड दृष्टी होती याचा उल्लेख त्यात आहे.
             कमरुद्दीन खानची योजना,"या घटने नंतर ही नग्न स्वरूप प्रकट आहे की ५ करोड़ मुसलमान ज्यांना पाकिस्तान बनल्यावर देखील इथे राहण्यास विवश केलंय,त्यांना आपल्या आझादी साठी एक दुसरी लढाई लढावी लागणार आहे.आणि हा संघर्ष जेव्हा सुरु होईल तेव्हा स्पष्ट होईल कि,शेष भारताच्या  पूर्वी आणी पश्चिमी सीमा प्रांतांत पाकिस्तान ची भौगोलिक आणी राजनितिक स्थिति आमच्यासाठी हिताची होईल यात संशय नाही.या उद्देश्यपुर्ती साठी जगभरातील मुसलमानांचे सहकार्य प्राप्त केले जाऊ शकते.यासाठी चार उपाय करावे लागतील.
१) हिंदूंच्या वर्ण व्यवस्था,या कमजोरीचा फायदा उचलून ५ करोड़ अस्पृश्यांना हाजम (धर्मांतरित) करून मुसलमानांची जनसंख्या वाढविणे.
२) हिन्दू बहुल प्रांतांतील राजकीय महत्वाच्या जागी मुसलमान आपली आबादी केन्द्रीभूत करील. उदाहरण, संयुक्त प्रान्त (उ प्र) मुसलमान पश्चिम भागात  अधिक संख्येने येवून तिथे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बनवू शकतात.(खासदार इम्रान मसूद ने आपण ४२% आहोत ! असे म्हटलंय.) बिहार मधील मुसलमान पुर्णिया मध्ये केन्द्रित होवून मग पूर्वी पाकिस्तानात समाविष्ट होतील.  
३) पाकिस्तान शी निकटतम संपर्क बनवून त्यांच्या निर्देशानुसार कार्य करणे.
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU सारख्या मुस्लिम संस्था जग भरातील मुसलमानांसाठी मुस्लिम हिताचे केंद्र बनवले जावे.संभाजीनगर येथे असे केंद्र स्थापित करण्याचा प्रयत्न  झाला होता.

     १८ ऑक्टोबर १९४७ दैनिक नवभारत मध्ये एक लेख प्रकाशित झाला होता," विभाजन के बाद भी पाकिस्तान सरकार और उसके एजंट भारत में प्रजातंत्र को दुर्बल बनाने तथा उसमे स्थान स्थान पर छोटे छोटे पाकिस्तान खड़े करने के लिए जो षड्यंत्र कर रहे है उसका उदाहरण जूनागढ़,हैदराबाद और कश्मीर बनाये जा रहे है।"
डा.आंबेडकरजी यांची भूमिका :- मराठवाडा आणी हैदराबाद संस्थान अश्या निजामिस्तान चा पूर्वास्पृश्य वर्ग निर्धनता आणि दुसरीकडे निजामी अत्याचार-धर्मांतरण अश्या जात्यात भरडला जात होता.त्यासाठी निजामाने दोन करोड चा फंड बनवला होता.वेगळ्या राज्यासाठी आपल्या प्रधान करवी "मीम पार्टी" बनविणार्या निजाम मीर उस्मान अली खान ने डा.बाबासाहब आंबेडकर यांना २५ करोड ची लालच दाखवून इस्लाम स्वीकारण्याचा प्रस्ताव पाठवला होता.जर पूर्वास्पृश्य इस्लाम चा स्वीकार करणार असतील तर त्यांना उच्च पदावर नियुक्त केले जाईल.वगैरे आमिष दाखवली होती. डॉक्टर आंबेडकर यांनी निजामाचा प्रस्ताव ठोकरत मक्रणपुर येथे महार परिषद बोलावली. निजामाच्या राज्यातील अस्पृश्य आर्थिक दृष्टी ने जरूर निर्धन आहेत परंतू,मनानी निर्धन नाहीत.राहिली गोष्ट माझ्या इस्लाम ग्रहण करण्याविषयी,माझा जमीर खरीदण्याची ताकद कोणात नाही."डॉक्टर आंबेडकर यांनी १८-११-१९४७ तथा २७-११-१९४७ ला एक परिपत्र काढून जोर-जबरदस्तीने धर्मांतरित केल्या गेलेल्या पूर्व अस्पृश्यांना आवाहन केलं कि त्यांनी वापस आपल्या घरी यावे !" हे पत्र २८ नोव्हेंबर १९४७ च्या नैशनल स्टैण्डर्ड नामक दैनिकाने प्रकाशित केलंय.या सभे नंतर इराप्पा या आंबेडकर अनुयायाने निजामाचा वध करण्याचा असफल प्रयत्न केला आणि पकडला गेला.

मीम पार्टी चा राष्ट्रद्रोही वक्तव्य देणारा ओवैसी आंबेडकर अनुयायी यांना हाताशी धरून हिंदू मतात फुट पाडीत पूर्व योजना राबवतोय. राष्ट्रध्वजा वरील धर्मचक्र काढून चांदतारा लावतोय आणि उत्तरेत जसे यादव-मुस्लिम ; बहुजन-मुस्लिम राजकारण खेळलं जातंय तसं महाराष्ट्रात मीम दलित-मुस्लिम वोट बँकेच्या बळावर राष्ट्रीयतेतील विषमतेचा लाभ उकळू पाहतोय. यांना भारतीय राज्य घटनेतील समान नागरिकता नकोय तर बहुजनातील आरक्षणात हिस्सेदारी हवी आहे ! आणि संविधानात अस्थाई आरक्षण हे फक्त हिंदूंसाठी आहे ! खर्या अर्थाने आंबेडकर अनुयायी व्हा !


Saturday 2 May 2015

वैष्णव पंथ बौध्द धम्म को मिली वैश्विक मान्यता-वैश्विक हिंदुत्व के विनाश में चीन की भूमिका


 भगवान बुध्द की वंश परंपरा इक्ष्वाकु कुल की लिच्छवी शाखा से जुडी है। तो, प्रभु श्रीराम इक्ष्वाकु कुल की रघुकुल शाखा में अवतरित हुए थे।भगवान बुध्द सुर्यवंशी क्षत्रिय लिच्छवी कुल के दीपक है जो,श्रीराम जी के रघुकुल जैसे इक्ष्वाकु कुल की ही शाखा है।इसलिए उन्हें वैष्णव पंथ की शाखा से जोड़कर ही देखा जाता रहा है। उनके विचारो का प्रभाव विश्व में गया परन्तु विश्वव्यापक भारतीय सत्ता हिन्दू सम्राट अशोक तक ने प्रसारित नहीं की उलटे बृहत्तर भारत सत्ता का र्हास हुवा।दुर्भाग्य है की,चीन जाते हुए बृहत्तर भारत की सीमाए बढाने का गणित हमने नहीं बनाया।विश्व में जिनके तीर्थ भारत में है, वह हिंदुत्व की परिघी में होने चाहिए।यही बृहत्तर भारत और हिंदुत्व की परिचायक है।
सिकंदर के पश्चात् आये रोमन आक्रमणकारी शक सम्राट मिनैंडर ने सिकंदर की पंजाब से आक्रमण की भूल को सुधारकर वैष्णव पंथियों में भेद उत्पन्न करने बुध्द मत का झोला पहनकर आक्रमण करने मगध गया। उसे बुध्द समझकर बृहद्रथ ने सहयोग किया और फिर उसने अपना वास्तव स्वरुप प्रकट किया। भयंकर रक्तपात के बिच बुध्द मतावलंबीयो को वैष्णवों से अलग करने की कूटनिति अपनाई.बद्रिनाथ जी की मूर्ति उखाड़कर नारदकुंड में फेंक दी। श्रीराम-कृष्ण की जन्मभूमि को घेर कर ध्वस्त किया। वैष्णव मंदिरोंको तोडा,नरमुंड काटकर रक्तप्राशन किया। उसे चीनी बुध्दो ने आश्रय दिया और अभय माँगा। उसकी स्तुति में "मिलिंद पन्ह" ग्रन्थ लिखा। {संदर्भ Study of History by Toynbee Voll. v P.182 } इसका यतार्थ यह नहीं है की, बुध्द मत का मिनैण्डर पर प्रभाव पड़ा था। प्लूटार्क लिखता है, 'उसके धम्म स्वीकार करने के पीछे राजनितिक उद्देश्य था। परराष्ट्रनिष्ठां के कारण धम्म का ह्रास हुवा और चीन भागना पड़ा। मान्शासन और प्रचंड अमानवीय हिंसा का प्रतिक मिनैंडर ने बुध्द मत को मातृभूमि में ही निष्प्रभ किया।"
फिर कुषाण आये। सन १२० में कुषाण राजा कनिष्क ने बुध्द भिक्खुओ की परिषद लेकर बौध्दो को संगठित रूप दिया। हीनयान उप पंथ की स्थापना कर संस्कृत का स्वीकार किया। कुषाण सम्राट कनिष्क का स्वागत किया। शक,कुषाणों की तरह आक्रान्ता हुण मिहिरगुल आये उन्होंने "तक्षशिला विद्यालय" तोड़ दिया। बाद में उसने वैदिक पंथ का स्वीकार किया था। उसे राजा यशोधर्मा ने ५२८ में मंदसौर में पकड़ा तो वह वैष्णव बन जाने के कारन बौध्द विदेशियों ने आनंद व्यक्त किया था। भारतीय बौध्दो ने चीनी बौध्दो की सहायता लेने के यह प्रमाण कहता है की,वैष्णवों में दिवार खडी करने में उनकी भूमिका थी। विदेशियों की सहायता लेकर भारतीय पंथ जब स्वकियो पर आक्रमण करने लगा तब चीन की "हाहा" नदी सीमा पर संग्राम हुवा और चीनी परास्त हुए। तब एक अनाक्रमण संधि भी हुई थी।
इस्लामी आक्रमण काल में चीनी प्रवासियों ने पलायन किया और बामियान में बुध्द मठों का विध्वंस हुवा। अबुल फजल ने "आइने अकबरी" में बामियान की २,००० गुन्फाओ में १२,००० शिल्प कला के भवन देखने का वर्णन किया है। खारोष्टि लिपि में लिखा ग्रन्थ भी था। इस्लामी आक्रमण काल में राष्ट्र की दुर्गति,धर्मान्तरण बुध्द विचार का अहिंसक प्रभाव था। परन्तु चीन ने साम्यवादी बनकर सशक्त बनते समय बुध्द पंथ को भी किनारे कर दिया। आज भारत देश की दुरावस्था और विश्व में इस्लाम के विस्तार के लिए अहिंसक धम्म कारन बना यह प्रमाणित होता है। चीनी प्रतिनिधि मंडल वू के नेतृत्व में भारत आ जाने के पश्चात् मोपला काण्ड हुवा और खुला अलगाव वाद प्रकट हुवा। विभाजन पश्चात् चीनी नेता हो ची मिन्ह के इशारे पर कश्मीर १/३ घुसपैठ हुई।
कहने का तात्पर्य यह है की, बुध्द पंथ ने चीन में विस्तार के बजाय स्वदेश में संकट ही खड़े किये।बृहत्तर भारत का बर्मा टुटा,श्रीलंका विघटित हुवा। नेपाल पास होकर दूर हुवा इसके लिए चीन जिम्मेदार है। आज यह सभी राज्य तथा आश्रयदाता चीन भी इस्लामी साम्राज्य वाद से झुज रहा है। विश्व इस्लाम के विरोध में संगठित होने के बजाय पाकिस्तान-अफगानिस्तान को सहयोग कर रहा चीन, शेष भारत को घेर चूका है और यह कल्पना कभी भगवान बुध्द ने की होती तो चीन की तरह सशक्त,सशस्त्र भारत होता।
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वैष्णव पंथ बौध्द धम्म को मिली वैश्विक मान्यता के कारन यदि हिंदुत्व से भिन्न कहा जाता है तो,वैश्विक हिंदुत्व के विनाश में चीन की भूमिका स्पष्ट होती है।
 इस्वी सन से बुध्द धम्म का प्रसार करने बृहत्तर भारत से चीन गए मग ब्राह्मण प्रचारको को प्रसिध्दी नहीं मिली। चीनी सम्राट मिंग को स्वप्न में महान सत्पुरुष का दर्शन हुवा और प्रधान की सलाह पर बुध्द धम्म की उत्कंठा में मिंग ने कुछ आचार्य भारत वर्ष में भेजे। उनकी विनती पर भारत से धम्मोपदेशक चीन जाने लगे। भिन्न १३ चीनी ग्रंथो में इसका वर्णन आया है। मिंग के निमंत्रण पर सर्व प्रथम गांधार निवासी " काश्यप मातंग " तिब्बत के रस्ते चीन गए। स्थानीय लिपि आत्मसात कर अनेक ग्रंथो का अनुवाद चीनी भाषा में किया। काश्यप के अनुयायी धर्मरक्ष ने काश्यप के पश्चात् दीक्षा कार्य जारी रखा। तिब्बती ग्रंथो के अनुसार दूसरी शताब्दी में आर्यकाल,सुविनय,धर्मकाल,महाबल चीन गए। वहा के कन्फ्युशियस धर्मावलम्बीयों के सत्ता परिवर्तन काल में बुध्द मत का विलोप हो जाता था और उन प्रसारकों के भारत वर्ष में वापसी के रास्ते बंद हो जाते थे,बिना अनुमति वापस निकले धर्मक्षेम को मार डाला गया था।
मध्य आशिया के खोतान प्रान्त पर हुए चीनी आक्रमण के पश्चात् अनेक बंदी चीन ले गए उनमे थे " कुमारजीव " (इ.सन ३४४-४१३) थे जिन्होंने महायान पंथ के संस्कृत ग्रंथो का चीनी में अनुवाद किया,यात्री " फाहियान " उनका शिष्य ! कश्मीर का राजपुत्र गुणवर्मा ने श्रमण वृत्ति का स्वीकार कर प्रसार कर अंत चीन में किया। इसके पश्चात् भी धर्मरुची,रत्नमती,बुध्द्शांत आदि ग्यारहवी शताब्दी तक प्रसारक चीन गए।
चीनी प्रवासी फाहियेंन सम्राट चन्द्रगुप्त के कालखंड में तो, युवान च्वांग ठानेश्वर सम्राट हर्षवर्धन के कालखंड में भारत भ्रमण पर आये थे।उन्होंने वैदिक मत के हिन्दू और बौध्द मत के (वैष्णव) हिन्दुओ में सामंजस्य और सहिष्णुता का परस्पर पूरक संबंध देखा था। गुप्त कुल के वंश वैदिक मतावलंबी होते हुए भी नरसिंह गुप्त ने नालंदा में बौध्द मठ  स्थापित किया था।
हर्षवर्धन ने वृध्दावस्था में बौध्द मत का स्वीकार करने की मनीषा विदेशी प्रवासी युवान च्वांग के प्रयास पश्चात् व्यक्त की थी। उस समय उनका जो गौरव च्वांग ने किया वह वैदिको को पसंद नहीं आया।इस कालखंड में भले ही वैदिक-बौध्द मतभिन्नता प्रकट हुई हो, राजा हर्ष ने दोनों पंथ मतों में कभी अंतर नहीं किया।हर्ष का चरित्रकार बाण भट्ट वैदिक था उन्होंने भी कही भी बौध्दो के विरुध्द कभी कही भी अनुदार उद्गार नहीं लिखे।
हर्ष चरित्र में अंकित दिवाकर मित्र के आश्रम में हुए मेले में भिक्षु,भागवत पंथी,केश लुंचक,कापालिक,लोकायतिक ऐसे नाना पंथी हिंदुत्व के अंतर्गत आनेवाले संप्रदाय उपस्थित थे, ऐसा वर्णन है।स्वयं सुर्यवंशी हर्ष के वंश में आदित्य कुल दैवत थे और उनके वंश में धार्मिक सहिष्णुता परमोच्च पद पर थी। कौन किस दैवत को भजे,किस पंथ मत की दीक्षा ले पूर्ण स्वतंत्रता थी।हर्ष की भगिनी राज्यश्री बुध्द संघ में प्रविष्ट हुई थी।
युवान च्वांग ने किये वर्णन के अनुसार,हर्ष की सहिष्णुता का दर्शन यहा होता है।हर पांच वर्ष पश्चात् वह विश्वजीत यज्ञ संपन्न कर संपत्ति का दान करता था।ऐसा एक प्रसंग उनकी जीवनी में छठी बार सन ६४३ में आया तब च्वांग प्रयाग में उपस्थित था।वह लिखता है,"इस उत्सव के लिए प्रयाग में विस्तीर्ण मंडप बनाये थे।७५ दिनों तक यह उत्सव संपन्न होता रहा। चार से पांच लक्ष सर्व पंथ मत के लोग उपस्थित थे।प्रथम दिन मंडप में अग्रभाग में भगवान बुध्द की प्रतिमा दुसरे दिन अग्रभाग में सूर्य प्रतिमा तीसरे दिन मुख्य सन्मान की शिव प्रतिमा अग्रभाग में रखी गयी।चौथे दिन बुध्द भिक्षुओ को दान संतर्पण के बाद अगले बीस दिन ब्राह्मण संतर्पण करने के बाद अन्य छोटे पंथ-मत के लिए मुक्तद्वार रखा गया।अंतिम समय निराश्रित,विकलांग ऐसे लोगो को भी संतुष्ट किया गया।" संदर्भ :- Life of Hieun Tsang-By Beal P.83
भारतीय पंथ-मतों में सहिष्णुता का यह प्रचंड दर्शन है।इसका पुनर्विचार करना चाहिए। पाकिस्तान परस्त चीन के विरोध में काफ़िरो को एकछत्र में भारतमाता के चरणों में पूजक बनाना भारतोत्पन्न पंथों के धर्माचार्यो का प्रथम कार्य हो !

Friday 2 January 2015

श्रीराम द्वारा स्थापित अर्धपीठ शनि मंदिर

निम्न लेख शिवयोगी श्री प्रमोद कुमार महाराज फ़ैजाबाद के सौजन्य से लिखा गया है। 
श्री शनि महाराज की उत्पत्ती 
महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या अदिति से हुआ। इनका पुत्र सूर्य ! सूर्य का विवाह त्वष्टा की पुत्री संज्ञा से हुआ। संज्ञा को वैवस्वत मनु,यम और पुत्री यमुना हुई। सूर्य के अमित तेज से प्रदीप्त संज्ञा ने अपनी छाया को प्रतिरूप बनाकर सूर्य के पास छोड़ दिया और स्वयं पिता के घर पहुँच गई। पिता ने वापस लौटने को कहा तो,घोड़ी बनकर वह कुरु प्रदेश के वन में रहने लगी। सूर्य के पास रही संज्ञा की छाया को सावर्णि मनु और शनि दो पुत्र हुए। 
छाया अपने पुत्र शनि से अधिक प्रेम करती थी परंतु ,संज्ञा के प्रथम पुत्रो के साथ सौतेला व्यवहार रखती थी। 
संज्ञा पुत्र यम ने खेल खेल में छाया को लात दिखाई तो,क्रोधित होकर छाया ने यम को चरणहीन होने का श्राप दिया। यम ने पिता सूर्य को यह घटना बताई तो,उन्होंने इसका परिहार बता दिया और छाया से भेदभाव का कारन पूछा। छाया ने सत्य घटना का वर्णन किया। 
सूर्य ससुराल आए। सारी घटना स्पष्ट हुई अपने तेज को सहनीय बनाने के त्वष्टा के प्रस्ताव को स्वीकार कर सूर्य ने अनुमती दी। त्वष्टा ने सूर्य को कांट छांटकर सहनीय बनाया। विश्वकर्मा ने उस तेज से सुदर्शन चक्र का निर्माण किया। 
फिर संज्ञा ने नासत्य और दस्त्र नामक अश्विनी कुमारो को जन्म दिया।
यम की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें पितरो का अधिपत्य दिया और धर्म-अधर्म का निर्णय करने का अधिकारी बनाया। यमुना और ताप्ती नदी के रूप में प्रवाहित हुई। शनि महाराज को नव ग्रहो में स्थान मिला। 
शनिदेव दंडनायक मंदगति एवं अधोदृष्टि कैसे हुए ?
शनि को क्रूर गृह माना गया है। शनिदेव की दृष्टी से मानव ही नहीं देवता भी बचने का प्रयास करते है। 
शिवगणों से युध्द कर  परास्त कर देने से शिव और शनि के बिच युध्द हुआ। शिव ने तीसरा नेत्र खोला तो,शनि ने मारक दृष्टी का प्रयोग किया। दोनों संहारक शक्तियों के प्रपात से उत्पन्न ज्योति शनिलोक पर जा गिरी। शनि पर त्रिशूल से प्रहार होते ही शनि अचेत हो गए। सुर्यदेव ने पुत्र स्नेह से जीवनदान की मांग की। शिवजी ने जीवनदान देकर समस्त संकट को हरकर क्रमानुसार दंड देने के लिए दंडनायक बना दिया। शनि के बंधू यम को मृत्यु प्रदान का कार्य सौप दिया। 
बालक पिप्पलाद मुनि के पिता का निधन शनि द्वारा दिए कष्टो के कारन हुआ था।बड़े होकर प्रतिशोध के लिए शनि महाराज के पीछे चल पड़े। अचानक पीपल के वृक्ष पर शनि का वास मिला तब मुनि ने ब्रह्मदण्ड चलाया। जिसके कारन शनि के दोनों पग टूट गए। पीड़ा से कराहकर शनि महाराज ने शिव जी का स्मरण किया। महादेव ने पिप्पलाद की शंका का निराकरण किया। "शनि तो,केवल सृष्टि के नियमो का पालनकर्ता है !" शनि का इसमें कोई दोष नहीं जानकर पिप्पलाद ने उन्हें क्षमा कर दिया। मात्र ब्रह्मदण्ड से पैर टूटने के कारन चाल मंदगति हो गई। 
विवाहयोग्य होनेपर श्रीकृष्ण भक्त शनि का विवाह चित्ररथ की पुत्री गुणवती से करा दिया गया।एकबार उनकी पत्नी पुत्र कामना रखकर उनके पास गई। तब वह श्रीकृष्णार्चन में तल्लीन थे। पत्नी की ओर ध्यान नहीं दिया। इसकारण पत्नी ने कोपित होकर पति को श्राप दिया कि,आपकी दृष्टी सदा के लिए अधो ही रहेगी। इसकारण उनकी दृष्टी अधोमुखी हुई। मात्र जिसपर पड़ी उसका नाश निश्चित ! शनिदेव न्याय देवता है। 
श्रीगणेश के जन्म पर सभी दर्शन करने कैलाश पहुंचे थे। जैसे ही शनि ने  मुख पर दृष्टी डाली तो,मस्तक कटकर धरती पर गिरा। पश्चात हाथी मस्तक उनके धड़ पर लगाकर पुनर्जीवित किया गया। (ब्रह्म वैवर्त पुराण )
26 Jan.2016 


 उज्जैन नरेश विक्रमादित्य ने भरी सभा में शनि महाराज का उपहास किया तब शनि महाराज का भ्रमण उज्जैन पर हो रहा था। अनेक संकटों से घिरे विकलांग हुए,साढ़ेसाती से घिरे विक्रमादित्य महाराज ने जब शनि महाराज की प्रार्थना कर क्षमा मांगी वह स्थान था, " नशरथपुर " उसे आगे अपभ्रंश से " नस्तनपुर " कहा गया है।
     शनि महाराज के साढ़ेसात पीठ है, उज्जैन M.P.,बदरीधाम U.K.,पैठन M.S.,पशुपतेश्वर Nepal, सूर्यकुंड H.P.,द्वारका Guj.,नस्तनपुर M.S.और गंगासागर W.B.; नस्तनपुर अर्ध पीठ है।
      यह स्थान नाशिक जिले के नांदगाव (रे.स्टे.) तहसील में है। नायडोंगरी-नांदगाव रेल्वे स्टेशन के मध्य में यह अतिप्राचीन स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि ,प्रभु श्री रामचन्द्र जी को माता कैकयी ने बनवास में भेजने की जब मांग की तब प्रभु को शनि महाराज का प्रकोप आरम्भ हुवा था। इस स्थान प्रभु श्रीराम जी को बाल शनि महाराजजी ने दर्शन दिए। अपने दंडकारण्य बनवास काल प्रवास में प्रभु श्रीराम जी ने बाल शनि महाराज की मूर्ति स्थापित की है। वह छायाचित्र संलग्न
मंदिर का जीर्णोध्दार हो रहा है। इसलिए, मूल मंदिर दर्शन के लिए प्रतीकात्मक मूर्ति पूजन-तेल-उड़द-नमक-काले कपडे अर्पण करने रखी गयी है।

चालीसगाव रेलवे स्टेशन से नांदगाव, बस से जाते समय २४ कि.मी. नस्तनपुर की सीमा पर खोजा किले के पास उतरकर आधा किलो मीटर रेल ब्रिज के निचे से चलकर जाया जा सकता है या नांदगाव से नायडोंगरी जानेवाली टेम्पो से नस्तनपुर जाया जा सकता है। तथा नासिक के ठक्कर बस स्टेंड सी.बी.एस.से दोपहर १२ बजे सीधी नस्तनपुर बस जाती है ३ घंटे की यात्रा है.वापसी में मुंबई आने के लिए चालिसगाव से रात ८-४० को अमृतसर-दादर एक्सप्रेस आराम से मिलती है।
        २१ सप्तम्बर १२ को १९९७ का एक संग्रहित दैनिक वार्ताहर में प्रकाशित लेख के आधारपर

दशरथकृत शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।२५।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।२६
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।२७
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।२८
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ।।२९
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ।।३०
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।३१
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।३२
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।३३
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ।।३४
अर्थ :- जिनके शरीर का वर्ण कृष्ण नील तथा भगवान् शंकर के समान है, उन शनि देव को नमस्कार है। जो जगत् के लिए कालाग्नि एवं कृतान्त रुप हैं, उन शनैश्चर को बार-बार नमस्कार है।।२५
जिनका शरीर कंकाल जैसा मांस-हीन तथा जिनकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई है, उन शनिदेव को नमस्कार है। जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट और भयानक आकार है, उन शनैश्चर देव को नमस्कार है।।२६
जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े किन्तु सूके शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को बार-बार प्रणाम है।।२७
हे शने ! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप घोर रौद्र, भीषण और विकराल हैं, आपको नमस्कार है।।२८
वलीमूख ! आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन ! भास्कर-पुत्र ! अभय देने वाले देवता ! आपको प्रणाम है।।२९
नीचे की ओर दृष्टि रखने वाले शनिदेव ! आपको नमस्कार है। संवर्तक ! आपको प्रणाम है। मन्दगति से चलने वाले शनैश्चर ! आपका प्रतीक तलवार के समान है, आपको पुनः-पुनः प्रणाम है।।३०
आपने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको सदा सर्वदा नमस्कार है।।३१
ज्ञाननेत्र ! आपको प्रणाम है। काश्यपनन्दन सूर्यपुत्र शनिदेव आपको नमस्कार है। आप सन्तुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण हर लेते हैं।।३२
देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग- ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं।।३३
देव मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूँ और आपकी शरण में आया हूँ।।३४


एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः।
अब्रवीच्च शनिर्वाक्यं हृष्टरोमा च पार्थिवः।।३५
तुष्टोऽहं तव राजेन्द्र ! स्तोत्रेणाऽनेन सुव्रत।
एवं वरं प्रदास्यामि यत्ते मनसि वर्तते।।३६
राजा दशरथ के इस प्रकार प्रार्थना करने पर ग्रहों के राजा महाबलवान् सूर्य-पुत्र शनैश्चर बोले- ‘उत्तम व्रत के पालक राजा दशरथ ! तुम्हारी इस स्तुति से मैं अत्यन्त सन्तुष्ट हूँ। रघुनन्दन ! तुम इच्छानुसार वर मांगो, मैं अवश्य दूंगा।।३५-३६

 उवाच-दशरथ
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम्।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित्।।३७
प्रसादं कुरु मे सौरे ! वरोऽयं मे महेप्सितः।
राजा दशरथ बोले- ‘प्रभु ! आज से आप देवता, असुर, मनुष्य, पशु, पक्षी तथा नाग-किसी भी प्राणी को पीड़ा न दें। बस यही मेरा प्रिय वर है।।३७
शनि उवाच-
अदेयस्तु वरौऽस्माकं तुष्टोऽहं च ददामि ते।।३८
त्वयाप्रोक्तं च मे स्तोत्रं ये पठिष्यन्ति मानवाः।
देवऽसुर-मनुष्याश्च सिद्ध विद्याधरोरगा।।३९
न तेषां बाधते पीडा मत्कृता वै कदाचन।
मृत्युस्थाने चतुर्थे वा जन्म-व्यय-द्वितीयगे।।४०
गोचरे जन्मकाले वा दशास्वन्तर्दशासु च।
यः पठेद् द्वि-त्रिसन्ध्यं वा शुचिर्भूत्वा समाहितः।।४१
न तस्य जायते पीडा कृता वै ममनिश्चितम्।
प्रतिमा लोहजां कृत्वा मम राजन् चतुर्भुजाम्।।४२
वरदां च धनुः-शूल-बाणांकितकरां शुभाम्।
आयुतमेकजप्यं च तद्दशांशेन होमतः।।४३
कृष्णैस्तिलैः शमीपत्रैर्धृत्वाक्तैर्नीलपंकजैः।
पायससंशर्करायुक्तं घृतमिश्रं च होमयेत्।।४४
ब्राह्मणान्भोजयेत्तत्र स्वशक्तया घृत-पायसैः।
तैले वा तेलराशौ वा प्रत्यक्ष व यथाविधिः।।४५
पूजनं चैव मन्त्रेण कुंकुमाद्यं च लेपयेत्।
नील्या वा कृष्णतुलसी शमीपत्रादिभिः शुभैः।।४६
दद्यान्मे प्रीतये यस्तु कृष्णवस्त्रादिकं शुभम्।
धेनुं वा वृषभं चापि सवत्सां च पयस्विनीम्।।४७
एवं विशेषपूजां च मद्वारे कुरुते नृप !
मन्त्रोद्धारविशेषेण स्तोत्रेणऽनेन पूजयेत्।।४८
पूजयित्वा जपेत्स्तोत्रं भूत्वा चैव कृताञ्जलिः।
तस्य पीडां न चैवऽहं करिष्यामि कदाचन्।।४९
रक्षामि सततं तस्य पीडां चान्यग्रहस्य च।
अनेनैव प्रकारेण पीडामुक्तं जगद्भवेत्।।५०

शनि ने कहा- ‘हे राजन् ! यद्यपि ऐसा वर मैं किसी को देता नहीं हूँ, किन्तु सन्तुष्ट होने के कारण तुमको दे रहा हूँ। तुम्हारे द्वारा कहे गये इस स्तोत्र को जो मनुष्य, देव अथवा असुर, सिद्ध तथा विद्वान आदि पढ़ेंगे, उन्हें शनि बाधा नहीं होगी। जिनके गोचर में महादशा या अन्तर्दशा में अथवा लग्न स्थान, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम या द्वादश स्थान में शनि हो वे व्यक्ति यदि पवित्र होकर प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल के समय इस स्तोत्र को ध्यान देकर पढ़ेंगे, उनको निश्चित रुप से मैं पीड़ित नहीं करुंगा।।३८-४१
हे राजन ! जिनको मेरी कृपा प्राप्त करनी है, उन्हें चाहिए कि वे मेरी एक लोहे की मर्ति बनाएं, जिसकी चार भुजाएं हो और उनमें धनुष, भाला और बाण धारण किए हुए हो।* इसके पश्चात् दस हजार की संख्या में इस स्तोत्र का जप करें, जप का दशांश हवन करे, जिसकी सामग्री काले तिल, शमी-पत्र, घी, नील कमल, खीर, चीनी मिलाकर बनाई जाए। इसके पश्चात् घी तथा दूध से निर्मित पदार्थों से ब्राह्मणों को भोजन कराएं। उपरोक्त शनि की प्रतिमा को तिल के तेल या तिलों के ढेर में रखकर विधि-विधान-पूर्वक मन्त्र द्वारा पूजन करें, कुंकुम इत्यादि चढ़ाएं, नीली तथा काली तुलसी, शमी-पत्र मुझे प्रसन्न करने के लिए अर्पित करें।
काले रंग के वस्त्र, बैल, दूध देने वाली गाय- बछड़े सहित दान में दें। हे राजन ! जो मन्त्रोद्धारपूर्वक इस स्तोत्र से मेरी पूजा करता है, पूजा करके हाथ जोड़कर इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसको मैं किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होने दूंगा। इतना ही नहीं, अन्य ग्रहों की पीड़ा से भी मैं उसकी रक्षा करुंगा। इस तरह अनेकों प्रकार से मैं जगत को पीड़ा से मुक्त करता हूँ।।।४२-५०।