Wednesday, 20 August 2014

हिन्दुराष्ट्र को हिन्दू राजसत्ता से उपेक्षित रखनेवाले दोषी !

हिंदू शब्द भारतीय विद्वानों के अनुसार ४००० वर्ष से भी पुराना है।
शब्द कल्पद्रुम : जो कि लगभग दूसरी शताब्दी में रचित है ,में मन्त्र- "हीनं दुष्यति इतिहिंदू जाती विशेष:"
अर्थात हीन कर्म का त्याग करने वाले को हिंदू कहते है।

इसी प्रकार "अदभुत कोष" में मन्त्र है, "हिंदू: हिन्दुश्च प्रसिद्धौ दुशतानाम च विघर्षने"।
अर्थात हिंदू और हिंदु दोनों शब्द दुष्टों को नष्ट करने वाले अर्थ में प्रसिद्द है।

वृद्ध स्म्रति (छठी शताब्दी)में मन्त्र,"हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्पर:। वेद्.........हिंदु मुख शब्द भाक्। "
अर्थात जो सदाचारी वैदिक मार्ग पर चलने वाला, हिंसा से दुख मानने वाला है, वह हिंदु है।

ब्रहस्पति आगम (समय ज्ञात नही) में श्लोक है,"हिमालय समारभ्य यवाद इंदु सरोवं।तं देव निर्वितं देशम हिंदुस्थानम प्रच्क्षेत ।
अर्थात हिमालय पर्वत से लेकर इंदु(हिंद) महासागर तक देव पुरुषों द्बारा निर्मित इस क्षेत्र को हिन्दुस्थान कहते है।

पारसी समाज के एक अत्यन्त प्राचीन अवेस्ता ग्रन्थ में लिखा है कि,
"अक्नुम बिरह्मने व्यास नाम आज हिंद आमद बस दाना कि काल चुना नस्त"।
अर्थात व्यास नमक एक ब्राह्मण हिंद से आया जिसके बराबर कोई बुध्दिमान नही था।

इस्लाम के पैगेम्बर मोहम्मद साहब से भी १७०० वर्ष पुर्व लबि बिन अख्ताब बिना तुर्फा नाम के एक कवि अरब में पैदा हुए। उन्होंने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है,............................

"अया मुबार्केल अरज यू शैये नोहा मिलन हिन्दे। व अरादाक्ल्लाह मन्योंज्जेल जिकर्तुं॥
अर्थात हे हिंद कि पुन्य भूमि! तू धन्य है,क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझे चुना है।

उरूल उकुल काव्य संग्रह के पृष्ठ २३५ पर उमर बिन हश्शाम लिखते है,
"व सहबी के याम फिम कामिल हिन्दे मौमन यकुलून न लाजह जन फइन्नक तवज्जरू"
अर्थात-हे प्रभो,मेरा संपुर्ण जीवन आप ले लो परंतु,एकही दिन क्यों न हो मुझे हिन्दुस्थान में अधिवास मिलने दो। क्योकि,वहां पहुंचकर ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ती हो सकती है।

१० वीं शताब्दी के महाकवि वेन .....अटल नगर अजमेर,अटल हिंदव अस्थानं ।
महाकवि चन्द्र बरदाई....................जब हिंदू दल जोर छुए छूती मेरे धार भ्रम ।

जैसे हजारो तथ्य चीख-चीख कर कहते है की हिंदू शब्द हजारों-हजारों वर्ष पुराना है।
इन हजारों तथ्यों के अलावा भी लाखों तथ्य इस्लाम के लूटेरों ने तक्षशिला व नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों को नष्ट करके समाप्त कर दिए है।

         मात्र श्री मोहनराव भागवतजी के पूर्व द्वितीय सरसंघ चालक महोदय ने इसका ज्ञान होते हुए भी सावरकरजी जिन्होंने
"आसिंधुसिंधु पर्यन्ता यस्य भरतभूमिका। पितृभूः पूण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितिस्मृतः ।।" आख्या बनाई
इस आख्या को आद्य सरसंघ चालक ने भी स्वीकार किया था उसे नकारा।द्वितीय सरसंघ चालक महोदय ने सावरकर-हिन्दू महासभा विरोध के लिए १९४६ के चुनाव में नेहरू का साथ देकर अखंड भारत पर विभाजन का बोझ डाला।
      सन १९३९ कोलकाता अधिवेशन में वीर सावरकर राष्ट्रीय अध्यक्ष,डॉक्टर हेडगेवार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,राजे घटाटेजी राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य चुने गये तो,हिंदू महासभा भवन कार्यालय मंत्री गुरु गोळवलकर महामंत्री पद का चुनाव हार का ठीकरा सावरकरजी पर फोडकर हिंदू महासभा-सावरकर विरोधी बने थे।
       १९४९ चुनाव में कांग्रेस तीसरे क्रमांक पर थी। सावरकर-गोळवलकर प्रतिस्पर्धा का लाभ उठाकर सत्ता पिपासु नेहरू ने हिंदू महासभा का "अखंड भारत" का वचन गुरुजी को देकर समर्थन मांगा। गुरुजी ने नेहरू का खुला समर्थन घोषित कर संघ स्वयंसेवक हिन्दू महासभा प्रत्याशियो को अंतिम क्षण नामांकन वापस लेने का आदेश दिया। परिणामतः वैकल्पिक प्रत्याशी उतारना असंभव होकर १६ % वोट पाकर हिंदू महासभा पराजित हुई। हिंदू प्रतिनिधी के रूप में काँग्रेस को संघ समर्थन के कारण विभाजन करार पर हस्ताक्षर करने निमंत्रित किया गया।विभाजन केवल हिन्दुराष्ट्र के कारन हुआ है। धार्मिक अल्पसंख्य लोगों को पाकिस्तान देने के पश्चात भी यह "हिन्दुराष्ट्र" है।क्योंकि,धर्मनिरपेक्षता की नींव संवैधानिक समान नागरिकता लागु नहीं है।यहां केवल "हिन्दू राजसत्ता" नहीं है और भाजप समर्थक संगठन "हिन्दू महासभा" को केवल इस ही लिए उभरने नहीं दे रहे है।हिन्दू महासभा नेता वीर सावरकरजी ने ९ अगस्त १९४७ को सर्व दलीय हिन्दू राजसत्ता की मांग की थी।
       अखिल भारत हिन्दू महासभा के अकेले विरोध के पश्चात् अखंड हिन्दुस्थान विभाजन की पार्श्वभूमी पर केन्द्रीय कार्यालय,हिन्दू महासभा भवन,मंदिर मार्ग,नई दिल्ली -१ पर दिनांक ९ अगस्त १९४७ दोपहर ४ से रात्रि ९ हिन्दू नेता-संस्थानिको की संयुक्त परिषद तथा अखिल भारत हिन्दू महासभा की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक प्रभात में ९ से १२ तक संपन्न हुई थी।राष्ट्रिय अध्यक्ष डॉ.ना.भा.खरे तथा पं.श्री.मौलीचन्द्र शर्माजी ने यह बैठक आयोजित की थी।इस बैठक में वीर सावरकरजी के साथ अमर हुतात्मा पं.नथूराम गोडसे तथा दैनिक हिन्दूराष्ट्र के संचालक श्री.नाना आपटे जी हवाई जहाज से दिनांक ८ को दिल्ली आये थे। हिन्दू परिषद के परिपत्रक में लिखा बैठक का उद्देश यह था, "
१] खंडित हिन्दुस्थान के नागरिकोंको समान अधिकार परन्तु, प्रस्तावित पाकिस्तान में हिन्दू जाती-पंथिय जैसे 'समाधान (?) पूर्वक' रहेंगे वैसे ही मुस्लमान यहाँ भी रहेंगे
२] हिन्दुस्थान के सभी अधिकार के पद तथा विशेष संरक्षण, नगर रक्षण,राजनितिक और यातायात विभाग में मुसलमानोंको अधिकार पद न दिया जाये।
३] हिन्दुस्थान के युवाकोंको सैनिकी शिक्षा अनिवार्य
४] पाकिस्तान के मुस्लिमेतर नागरिकोंको हिन्दुस्थान का नागरिक माना जायेगा।
५] हिंदी भाषिक प्रान्तोंमे शिक्षा का माध्यम देवनागरी लिखित हिंदी ; अन्य प्रान्तोमे शिक्षा का माध्यम प्रांतीय भाषा-लिपि रहेगी परन्तु,प्रशासकीय और न्यायदान के लिए राष्ट्रभाषा हिंदी को मान्यता होगी।
६]गो वध बंदी तत्काल प्रभाव से लागु हो।
७]हिन्दू धर्मस्थान और तीर्थस्थानो की सुरक्षा
८] अज्ञानतावश या बलात्कार से धर्मांतरितोंका इच्छानुसार शुध्दिकरण
९] हिन्दू जाती-पंथ में सवर्ण-अवर्ण ऐसा भेद किये बिना सभी को समानता के साथ प्रश्रय
१०]सभी को समान अवसर और संपत्ति का समान वितरण
११]बलवंत अखंड हिन्दुस्थान की निर्मिती के लिए सभी संस्थानिक हिन्दुस्थान में समाविष्ट हो।
१२] हिन्दुस्थान का ऐक्य और अधिक दृढ़ करने के लिए भाषिक सिध्दांत पर प्रान्त की पुनर्रचना।
 इन मुद्दोपर सभी की एक राय बनी और संस्थानिकोने इसे मान्य किया।                                
 दिनांक १० अगस्त १९४७ को प्रभात में ८ से दोपहर १ बजे तक धर्मचक्र अंकित तिरंगा,राष्ट्रध्वज और कुंडलिनी कृपाण अंकित अखिल हिन्दू ध्वज पर चर्चा हुई, सावरकरजी ने कहा ' यथा माम् प्रपद्यन्ते ' यही हमारा सिध्दांत हो ! हम दुसरे ध्वज का अपमान तब तक नहीं करेंगे जब तक उनसे हमारा ध्वज अवमानित नहीं किया जाता।सावरकर जी ने कहा," अब निवेदन,प्रस्ताव,विनती नहीं !अब प्रत्यक्ष कृति का समय है। " सर्व पक्षीय हिन्दुओंको हिन्दुस्थान को पुनः अखंड बनाने के कार्य में लग जाना चाहिए !", "रक्तपात टालने के लिए हमने पाकिस्तान को मान्यता दी,ऐसा नेहरू का युक्तिवाद असत्य है।इससे रक्तपात तो टलनेवाला नहीं है परन्तु,फिरसे रक्तपात की धमकिया देकर मुसलमान अपनी मांगे रखते रहेंगे।उसका अभी प्रतिबन्ध नहीं किया तो इस देश में १४ पाकिस्तान हुए बिना नहीं रहेंगे।उनकी ऐसी मांगो को जैसे को तैसा उत्तर देकर नष्ट करना होगा।रक्तपात से भयभीत होकर नहीं चलेगा।इसलिए ' हिन्दुओंको पक्षभेद भूलकर संगठित होकर सामर्थ्य' संपादन करना चाहिए और देश विभाजन नष्ट करना चाहिए ! " कहा था।इसे संघ नेतृत्व ने नेहरू के समर्थन में अनुलक्षित किया। इसके पश्चात सामने आया ..........
         अखंड पाकिस्तान का लक्ष
         लाहोर से प्रकाशित मुस्लिम पत्र 'लिजट' में अलीगढ विद्यालय के प्रा.कमरुद्दीन खान का एक पत्र प्रकाशित हुवा था जिसका उल्लेख पुणे के दैनिक ' मराठा ' और दिल्ली के "ओर्गनायजर" में २१ अगस्त १९४७ को छपा था। सरकार के पास इसका रेकॉर्ड है।" हिन्दुस्थान बट जाने के पश्चात् भी शेष भारत पर भी मुसलमानों की गिध्द दृष्टी किस प्रकार लगी हुई है,लेख में छपा था चारो ओर से घिरा मुस्लिम राज्य इसलिए समय आनेपर हिन्दुस्थान को जीतना बहुत सरल होगा।"
             कमरुद्दीन खा अपनी योजना को लेख में लिखते है, " इस बात से यह नग्न रूप में प्रकट है की ५ करोड़ मुसलमानों को जिन्हें पाकिस्तान बन जाने पर भी हिन्दुस्थान में रहने के लिए मजबूर किया है , उन्हें अपनी आझादी के लिए एक दूसरी लडाई लड़नी पड़ेगी और जब यह संघर्ष आरम्भ होगा ,तब यह स्पष्ट होगा की,हिन्दुस्थान के पूर्वी और पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाकिस्तान की भौगोलिक और राजनितिक स्थिति हमारे लिए भारी हित की चीज होगी और इसमें जरा भी संदेह नहीं है की,इस उद्देश्य के लिए दुनिया भर के मुसलमानों से सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. " उसके लिए चार उपाय है।
१)हिन्दुओ की वर्ण व्यवस्था की कमजोरी से फायदा उठाकर ५ करोड़ अछूतों को हजम करके मुसलमानों की जनसँख्या को हिन्दुस्थान में बढ़ाना।
२)हिन्दू के प्रान्तों की राजनितिक महत्त्व के स्थानों पर मुसलमान अपनी आबादी को केन्द्रीभूत करे। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रान्त के मुसलमान पश्चिम भाग में अधिक आकर उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्र बना सकते है.बिहार के मुसलमान पुर्णिया में केन्द्रित होकर फिर पूर्वी पाकिस्तान में मिल जाये।
३)पाकिस्तान के निकटतम संपर्क बनाये रखना और उसी के निर्देशों के अनुसार कार्य करना।
४) अलीगढ मुस्लिम विद्यालय AMU जैसी मुस्लिम संस्थाए संसार भर के मुसलमानों के लिए मुस्लिम हितो का केंद्र बनाया जाये।क्या यह कथित हिन्दू संगठनों के विस्मरण में चला गया था ?

           गांधी वध के पश्चात हिन्दू महासभा और संघ के नेता-कार्यकर्ता धरे गए। सावरकरजी को फ्रेम करने का नेहरू का प्रयास डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी और डॉक्टर आंबेडकर के सूझबूझ से विफल हुआ।तब मुखर्जी पर नेहरू ने "अखिल भारत हिन्दू महासभा" से "हिन्दू" शब्द हटाकर गैर हिन्दू सदस्यता खुली करने का दबाव बनाया। वीर सावरकरजी के विरोध के कारन नेहरू ने मंत्री पद से त्यागपत्र देने का दबाव बनाया।सन १९४९ अयोध्या आंदोलन में हिन्दू महासभा को मिली सफलता जनाधार में न बदले इसलिए अयोध्या में मंदिर के समर्थक सरदार पटेल ने गुरु गोलवलकर को तिहाड़ से मुक्त करने के ऐवज में कांग्रेस-नेहरू मुक्त भारत के लिए नए दल के निर्माण का वचन लिया। गुरूजी के आदेश से उत्तर भारत संघ चालक बसंतराव ओक को डॉक्टर मुखर्जी के पीछे छोड़कर उनके नेतृत्व में "हिन्दू महासभा" तोड़कर "जनसंघ" बनाया गया।
        इसपर गोलवलकरजी के निकटवर्ती स्वयंसेवक,पत्रकार,लेखक गंगाधर इन्दूरकरजी ने "रा स्व संघ-अतीत और वर्तमान" पुस्तक लिखी है। वह लिखते है,"वीर सावरकरजी की सैनिकीकरण की योजना के विरोध का कारन,यह भी हो सकता है कि,उन दिनों भारतभर में और खासकर महाराष्ट्र में वीर सावरकरजी के विचारों की जबरदस्त छाप थी। उनके व्यक्तित्व और वाणी का जादू युवकोंपर चल रहा था। युवक वर्ग उनसे बहुत आकर्षित हो रहा था ऐसे में,गोलवलकरजी को लगा हो सकता है कि,यह प्रभाव इसप्रकार बढ़ता गया तो,युवकों पर संघ की छाप कम हो जाएंगी। संभवतः इसलिए हिन्दू महासभा और सावरकरजी से असहयोग की नीति अपनाई हों।" इस विषयपर इन्दूरकरजी ने संघ के वरिष्ठ अधिकारी अप्पा पेंडसे से हुई वार्तालाप का उल्लेख करते हुए लिखा है कि,"ऐसा करके गोलवलकरजी ने युवकोंपर सावरकरजी की छाप पड़ने से तो,बचा लिया। पर ऐसा करके गोलवलकरजी ने संघ को अपने उद्देश्य से दूर कर दिया।"

          वीर सावरकरजी के निर्देश पर उ प्र हिन्दू महासभा अध्यक्ष महंत श्री दिग्विजयनाथ महाराज,फ़ैजाबाद जिला हिन्दू महासभा अध्यक्ष ठाकुर गोपालसिंग विशारद तथा हिन्दू महासभाई निर्मोही संतों के सहयोग से सफल श्रीराम जन्मस्थान मंदिर १९४९ आंदोलन में छह रामानंदीय निर्मोही आखाड़े के हिन्दू महासभाइयों पर मंदिर में मुर्तिया रखने का आरोप लगा और निर्दोष मुक्त भी हुए थे। इस अभियोग को १२ वर्ष के भीतर पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से सुन्नी वक्फ बोर्ड ने "हिन्दू महासभा द्वारा रखी गई मुर्तिया हटाने की याचिका " १९६१-६२ में लगाई थी।

         अ.भा.हिंदू महासभा अध्यक्ष नित्य नारायण बैनर्जी ने "विश्व हिन्दू धर्म संमेलन" का आयोजन महामहीम राष्ट्रपती डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णनजी की अध्यक्षता में सन १९६३ दिसंबर अंतिम सप्ताह विश्व हिंदू धर्म संमेलन-विज्ञान भवन-देहली में संपन्न किया।
परम पूज्य श्री शंकराचार्य द्वारिका,पुरी,बद्रीनाथ और गोरखनाथ पीठ के महंत श्री दिग्विजयनाथजी महाराज,पंच पीठाधीश्वर पंडित श्रीराम शर्मा अनेक संत,महात्मा,महंत,साधू-संन्यासी उपस्थित थे।
       गुरु गोळवलकरजी ने सावरकरजी के समक्ष प्रस्ताव रखा कि,'हिंदू महासभा अब राजनीती छोड सांस्कृतिक-शुद्धीकरण के कार्य करे !' सावरकरजी ने कहा विभाजन को मान्यता देकर भी "हिंदुराष्ट्र" के समक्ष खडी समस्या का समाधान नहि निकला। इसलिये हिंदू राजनीती की आवश्यकता शेष है !'
सावरकरजी के नकार को गुरुजी ने सन १९३९ से चल रहे व्यक्ती वर्चस्ववाद में "विश्व हिंदू धर्म संमेलन" को हायजैक कर के सावरकरजी के मकान सावरकर सदन के निकट वडाला में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी सन १९६४ को "विहिंप" की स्थापना की। और अखिल भारत हिंदू महासभा संस्थापक सदस्य पं.मदन मोहन मालवीय तथा शेठ बिर्लाजी द्वारा श्रीकृष्ण जन्मभूमी मुक्ती तथा मंदिर निर्माण के लिये इकठ्ठा किये कोष से श्रीकृष्ण जन्मस्थान को विवादित छोडकर बगल में हवेली खरीदकर श्री केशवराय मंदिर बनवाया।इसे विवादित बनाए रखने के कारन,
      श्रीराम जन्मभूमी आंदोलन का वीर सावरकर के निर्देश पर नेतृत्व करनेवाले गोरक्ष पीठ महंत श्री दिग्विजयनाथ महाराज ने जनसंघ के आत्मघात पर अपने मृत्युपत्र में मेरा उत्तराधिकारी केवल "हिन्दू महासभाई" होगा ! लिखकर रखा था।भाजप ने चतुराई से इस कथित बाबरी आंदोलन का अध्यक्ष महंत श्री अवैद्यनाथ महाराज हिन्दू महासभा सांसद को सौपकर जो कार्य आरंभ किया इसके कारन हिन्दू महासभा उत्तर प्रदेश की मुरादाबाद १९९१ कार्यकारिणी बैठक में उनके साथ अन्य ५ सदस्यों को निष्कासित किया था। मात्र योगी आदित्यनाथ महाराज भाजप के ध्वज और हिन्दू महासभा के बैनर पर चुनाव लड़ते रहे और १८ अक्तुबर १९९२ श्रीराम जन्मभूमी आंदोलक महंत श्री रामदास ब्रह्मचारी उनका विरोध करने के लिए हिन्दू महासभा के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे थे।१९९६ के चुनाव में हिन्दू महासभा को ७ स्थान छोड़कर हिन्दू महासभा के अजेंडे पर चुनाव में उतरी भाजप के नेता बाजपेई ने,"हिन्दू महासभा का पुनरुत्थान भाजप के लिए आत्मघात होगा !" कहकर छोड़ी गई ७ जगह पर अपने प्रतिनिधी खड़े कर विश्वासघात किया था।

             २६ जुलाई २००९ को श्रीराम जन्मस्थान के २३ मार्च १५२८ पूर्व से ६७:७७ भूमी के अधिपत्यधारी रामानंदीय निर्मोही आखाड़े की सन १८८५ से चल रही मालिकाना अधिकार की सुनवाई १९४९ अयोध्या आंदोलन की फाइल्स के अभाव में रुकी।जो,उ प्र एस डी ओ सुभाष भान साध के पास थी। २००० में लिबरहान आयोग में साक्ष देने जाते समय तिलक ब्रिज रेल स्थानक पर धक्का देकर फाइल्स गायब कर दी गयी है। ऐसा मुख्यमंत्री मायावती की प्रेस से पता चला। तो,घटना को परिणाम देने के लिए सहयोग करनेवाले को बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का उपकुलगुरु बनाए जाने का षड्यंत्र भी उजागर हुआ है। हिन्दू महासभा उत्तर प्रदेश के षड्यंत्र के अनुसार अध्यक्ष बने के माध्यम से हिन्दू महासभा राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निष्कासित पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष-अधिवक्ता के माध्यम से विहिंप ने याचिका लगवाकर ३० सप्तम्बर को उच्च न्यायालय द्वारा भाजप ने १९९१ में विवादित बनवाई २:७७ भूमि का १/३ निर्णय आनेवाला है ! यह ध्यान में रखकर भाजप नेता रविशंकर प्रसाद हिन्दू महासभा के अधिवक्ता के रूप में देश के सामने समर्थक ? बनकर उभरे थे।इसका हिन्दू महासभा ने विरोध किया था। अब मंदिर-मस्जिद समझौता- १/३ बटवारे के लिये सक्रिय "पलोक बसु समिती" का संयोजन तुलसी स्मारक-रामघाट-अयोध्या में होता रहा। हिन्दू महासभा ने वहां भी विरोध कर रामानंदीय निर्मोही आखाड़े के अधिकार क्षेत्र की मांग की। श्रीराम जन्मभूमी कब्जाने के लिए ही, हिंदू महासभा को अपने हस्तको द्वारा नेतृत्व कब्जाने के लिए न्यायालयीन विवाद उल्झाकर समानांतर हिंदू महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणीया बनाकर पहले भाजप-विहिंप समर्थक स्वामी चक्रपाणि,नंदकिशोर मिश्रा अब विहिंप केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य, रामानुज संप्रदाय के श्री त्रिदंडी जीयर स्वामी को आगे कर समानांतर हिन्दू महासभा की विहिंप राष्ट्रीय कार्यकारिणी ? सावरकर परिवार विरोधको के साथ मिलकर बनाई, संत महासभा बनाकर हिंदू महासभा भवन- श्रीराम जन्मस्थान मंदिर पर कब्जा करना हिंदू हित की राजनीती का दमन नहि हैं ? अंधश्रध्द हिन्दू गुमराह होते रहे और सत्य को झुठलाते रहने का यह दुष्परिणाम "हिन्दुराष्ट्र" भुगत रहा है। इसके लिए कही आप भी जिम्मेदार है ? मंथन करें !