Sunday 7 December 2014

मुसलमानों ने साक्ष दिए है,ऐसे मंदिर को "बाबरी" का कलंक लगाकर ध्वस्त करना क्या यहीं हिंदुत्ववाद है ?

 प्रभु श्रीराम की स्मृती में उनके पुत्र लव कुश ने श्रीराम जन्मस्थान पर ८४ कसोटी के ८४ स्तंभ लगाकर भव्य मंदिर बनाया था। जो,रामकोट नामसे भी जाना जाता था। नंदवंश के कालतक श्रीराम जन्मस्थान मंदिर का वैभव अक्षुण्ण बना रहा। ईसापूर्व तीनसौ वर्ष यूनानी आक्रमण आरंभ हुए। सिकंदर की जगज्जेता बनने की इच्छा पंजाब के १७ गणराज्यों ने संगठीत प्रत्याक्रमण के साथ धराशाई की। मिनेंडर ने मार्ग बदलकर आक्रमण किया और वैष्णव मंदिर ध्वस्त करते हुए वैष्णव पंथ के अंगभूत पंथ को अलग किया। हिंदुत्व और भारतीयता को नष्ट करने के लिए सभी पंथ का मूल इक्ष्वाकु कुल के श्रीराम के मंदिर को ध्वस्त करना आवश्यक समझा। हिन्दुओं के प्रबल विरोध के पश्चात भी मंदिर ध्वस्त हुआ। उपरोक्त हार के कारण सभी हिन्दू अपने भेद नष्ट करके संगठीत होकर तीन महीने के संघर्ष के पश्चात शुंग वंशीय राजा द्युमत्सेन ने मिनेंडर को परास्त किया और मार गिराया। फिर भी कुषाणों के आक्रमण बारंबार होते रहे,इसलिए श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर बनाने में बाधा आती रही।

ईसापूर्व सौ वर्ष महाराजा विक्रमादित्य के बड़े भाई भर्तृहरि ने राज्य छोड़कर संन्यास लिया,गुरु गोरखनाथ महाराज के शिष्य बने। विक्रमादित्य महाराज ने श्रीराम जन्मस्थान के अवशेष खोदकर वहां मंदिर का पुनर्निर्माण किया। इसके स्तम्भों का उल्लेख 'वंशीय प्रबंध' तथा 'लोमस रामायण' में मिलता है। प्रभु श्रीराम की श्यामवर्ण मूर्ति थी। इस प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा राम नवमी को उत्सव के साथ की गई।

इस्लाम के उद्भव के कारण अनेक आक्रमण बृहत्तर भारत ने झेले। सन १०२६ सोरटी सोमनाथ मंदिर पर महमूद गझनवी ने आक्रमण कर ध्वस्त किया तो,उसके भांजे सालार मसूद ने १०३२ में 'सतरखा' (साकेत) जीता और अयोध्या पर आक्रमण किया। मंदिर ध्वस्त करने के कारण अनेक राजाओं ने मिलकर उसे भागने पर विवश किया। राजा सुहेलदेव पासी ने उसका पीछा किया और सिंधौली-सीतापुर में सय्यद सालार मसूद के पांच सिपहसालार मार गिराए। वहीं उनको दफनाकर पासी राजा मसूद के पीछे पड़ा। मात्र अब इनकी कब्र को मजार कहकर " पंचवीर " कहा जा रहा है।

मसूद के जीवनीकार अब्दुर्रहमान चिश्ती ने लिखा है, सुहेलदेव ने अनेक राजाओं को पत्र लिखा था। य़ह मातृभूमी हमारे पूर्वजों की है और यह बालक मसूद हमसे छिनना चाहता है।जितनी तेजी से हो सके आओ,अन्यथा हम अपना देश खो देंगे। यह पत्र सालार के हाथ लगा था और भागने की तयार था।पासी राजा के नेतृत्व में लडने १७ राजा सेना लेकर आए।इनमें राय रईब,राय अर्जुन,राम भिखन,राय कनक,राय कल्याण,राय भकरू,राय सबरू,राय वीरबल,जय जयपाल,राय श्रीपाल,राय हरपाल,राय प्रभू,राय देव नारायण और राय नरसिंह आदी पहूंचे।बहराइच से ७ कोस दूर प्रयागपुर के निकट घाघरा के तटपर महासमर हुवा।चारों ओर से घेरकर, रसद तोडकर कई दिनों के युध्द पश्चात् १४ जून १०३३ को सालार मसूद मारा गया।चूनचूनकर मुसलमान लुटेरों को मारा गया।सालार मसूद को जहां दफनाया उस कब्र को अब मजार कहकर मुसलमान धार्मिक प्रतिष्ठा दे रहे है।

इस ध्वस्त मंदिर को गढवाल नरेश गोविंदचंद्र शैव (१११४-५४) ने ८४ कसोटी के पत्थर भेजकर अपने सामंत कनौज के नयचंद द्वारा बनवाया।इस मंदिर में दर्शन करने गुरूश्री नानकदेव बेदी अपने मुसलमान शिष्य मरदाना के साथ आएं थे।इस मंदिर का व्यवस्थापन श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाडे के पास था तब मीर बांकी ने मंदीर पर आक्रमण किया था।१,७२,००० हिंदू मंदिर बचाते मारे गए तब, निर्मोही आखाडे के पुजारी श्यामानंद ने मुर्तीयां शरयु नदी के लक्ष्मण घाट के निचे छुपा दी थी।मीर बांकी ने मंदिर प्रवेश को रोक रहे श्यामानंद का शिर कांटकर प्रवेश किया और बुतशिकन का ओहदा पाने से वचित मीर ने तोप से मंदिर ध्वस्त किया।इस मलबे से चुनकर स्तंभोंपर जो वास्तू खडी की उसमें कभी नमाज नहीं हो सकी।कयोंकि,स्तंभोंपर बुत-मुर्तीयां थी।
७८ बल्वों के साथ मंदिर का अधिपत्य निर्मोही आखाडे के पास रहा।२४ दिसंबर १९४९ को मंदिर कलंकमुक्त हुआ।मंदिर में मुर्तीयां रखने का आरोप छह निर्मोहीयों पर लगा,निर्दोष छुटे।
हिन्दू महासभा १९४९ अयोध्या आन्दोलन के पश्चात् यह मंदिर न्यायालय संरक्षित है।१९५०-५१ हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा गोपाल सिंग विशारद द्वारा चली ३ / १९५० दिवाणी, न्यायालयीन कार्यवाही में अयोध्या परिसर के १७ राष्ट्रिय मुसलमानों ने कोर्ट में दिए हलफनामे का आशय,
*"*हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है।जिसे शाही हुकूमत में शहेंशाह बाबर बादशाह हिन्द ने तोड़कर बाबरी बनायीं थी।इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया।बराबर लड़ते रहे और इबादत करते आये है।बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए ७७ बल्वे हुए।सन १९३४ से इसमें हम लोगो का जाना इसलिए बंद हुवा की,बल्वे में तीन मुसलमान क़त्ल कर दिए गए और मुकदमे में सब हिन्दू बरी हो गए।कुरआन शरीफ की शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज नहीं पढ़ सकते क्योंकी,इसमें बुत है।इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है की,जो यह राम जन्मभूमि और बाबरी का झगडा है यह जल्द ख़त्म करके इसे हिन्दुओ को दिया जाये।" वली मुहमद पुत्र हस्नु मु.कटरा ; अब्दुल गनी पुत्र अल्ला बक्श मु.बरगददिया ;अब्दुल शफुर पुत्र इदन मु.उर्दू बाजार ; अब्दुल रज्जाक पुत्र वजिर मु.राजसदन ; अब्दुल सत्तार पुत्र समशेर खां मु.सैय्यदबाड़ा ;शकुर पुत्र इदा मु.स्वर्गद्वार ; रमझान पुत्र जुम्मन मु.कटरा ; होसला पुत्र धिराऊ मु.मातगैंड ; महमद गनी पुत्र शैफुद्दीन मु.राजा का अस्तंबल ; अब्दुल खलील पुत्र अब्दुरस्समद मु.टेडी बाजार ; मोहमद हुसैन पुत्र बसाऊं मु.मीरापुर डेरा बीबी ; मुहम्मद जहाँ पुत्र हुसैन मु.कटरा ; लतीफ पुत्र अब्दुल अजीज मु.कटरा ; अजीमुल्ला पुत्र रज्जन मु.छोटी देवकाली ; मोहम्म्द उमर पुत्र वजीर मु.नौगजी ; फिरोज पुत्र बरसाती मु.चौक फ़ैजाबाद ; नसीबदास पुत्र जहान मु.सुतहटी

* टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी की अर्जुनसिंग को दी साक्ष*,"मस्जिद में मूर्ति नहीं होती इसके स्तंभों में मुर्तिया है।मस्जिद में मीनार और जलाशय होता है वह यह नहीं है।स्तंभों पर लक्ष्मी,गणेश और हनुमान की मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं गयी है।"

* कुरआन को समझनेवाले सुलतानपुर के विधायक मुहम्मद नाजिम ने मुसलमानों को किया आवाहन :- "बाबरी मस्जिद के मुतालिक मुसलमानों के बहुत से ऐसे बयानात मैंने अखबारात में पढ़े है। किसी ने इस काम को करनेवालों को जालिम कहां है। किसी ने फसादी और किसीने तो,बढकर गुंडा कहा है। यह उन मुसलमानों के बयानात है जो,महमूद गजनवी के इस जुमले को सदैव गर्व से दुहराया करते है कि,बुतपरस्त नहीं बल्कि बुतशिकन हूँ। यह बात आज तक मेरी समझ में नहीं आयी कि,जिस काम को करके एक मुसलमान गाजी का लक़ब पा सकता है उसी काम को करके एक हिन्दू गुंडा कैसे हो सकता है ? अभी भी वक्त है कि,हिन्दुस्थान के कुछ समझदार हिन्दू और मुसलमान इस काम को हाथ में लेकर मोहब्बत,रबादारी और इंसानियत को दरमियान में लेकर एक दूसरे की इबादतगाहों को वापस करने की बात सोचे। इससे हमारे सभी भाई जो दोनों कौमों के मध्य खंदक बना गए है ,वह पट जाएगी। "
माननीय न्यायालय का आदेश है की ,*"मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था जैसी है* वैसे *ही सुरक्षित रहे और सेवा,पूजा तथा उत्सव जैसे हो रहे थे वैसे ही होते रहेंगे।*"
पक्षकार हिन्दू महासभा की मांग पर १९६७ से १९७७ के बिच प्रोफ़ेसर लाल के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग के संशोधक समूह ने श्रीराम जन्मभूमि पर उत्खनन किया था। इस समिती में मद्रास से आये
*संशोधक मुहम्मद के.के.भी आएं थे, वह लिखते है कि,*
,"वहा प्राप्त स्तंभों को मैंने देखा है। JNU के इतिहास तज्ञोने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर अन्य संशोधन के पहलुओ को दबा दिया है।मुसलमानों की दृष्टी में मक्का जितना पवित्र है उतनी ही पवित्र अयोध्या हिन्दुओ के लिए है।मुसलमानों ने राम मंदिर के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौपनी चाहिए।उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने के लिए रची गयी इटोंकी पंक्तिया,दो मुख के हनुमान की मूर्ति,विष्णु,परशुराम आदि के साथ शिव-पार्वती की मुर्तिया उत्खनन में प्राप्त हुई है।"
भाजप-विहिंप ने,रामानंदीय निर्मोही आखाड़े का श्रीराम जन्मस्थानपर १९४९ पूर्व से अधिकार होने की साक्ष देनेवाले देवकीनंदन अग्रवाल को "रामसखा" बनाकर अपनी कब्जे की दृष्ट बुध्दी का परिचय देने के पश्चात् रुकना चाहिए था। सरकारी वेतन से कार्यरत चार पुजारी-एक रिसीव्हर और दर्शन-भोग-उत्सव हो रहे मंदिर के श्री एन डी तिवारी-बुटासिंग के हाथों शिलान्यास हुआ है। मुसलमानों ने साक्ष दिए है। कुराण भी ऐसे स्थानपर मस्जिद को अमान्य करता है। ऐसे मंदिर को राजनीतिक-आर्थिक षड्यंत्र के लिए "बाबरी" का कलंक लगाकर राष्ट्रद्रोहियों को संगठीत करना और मंदिर ध्वस्त कर देश-विदेश के हिन्दुओं को सांप्रदायिक दंगे में झोंकना क्या यहीं हिंदुत्ववाद है ? इनकी राजनीती के कारण बने बनाये समझौते नष्ट हो रहे है। श्रेय-कब्ज़ा-बटवारा की राजनीती कर रही भाजप-विहिंप के कारन मुस्लिम पक्ष सबल होकर निर्णय बदल रहा है। इसके लिए संसद में कानून का कोई औचित्य नहीं !







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