Sunday 21 December 2014

ईसाई-इस्लामी मत कोई धार्मिक नहीं !

इस्लाम के जन्म का अवतरण होने के लिए यहूदी-ज्यू लोगों पर रोमन साम्राज्यवादीयों का अत्याचार इन्क्विझिशन जिम्मेदार है !
इसा मसीह के जन्म के सौ वर्ष पूर्व जेरूशलेम पर सम्राट राजदत्त का राज्य था। सन ३२४ तक वेटिकन "वेद वाटिका" थी। बौध्द अर्थात वैष्णव यहाँ स्थापित थे। सन ५२६ ब्रिटेन राजघराने ने रोमन राजसत्ता अर्थात धर्मांतरण का स्वीकार किया और धर्म-अधर्म की आड़ में साम्राज्य विस्तार के लिए वधस्तम्भ का भय दिखाकर उस ही को पूजनीय बनाया। वास्तविकतः येशु कभी रोम गए ही नहीं थे।
रोमनों के अत्याचार से बचने पलायन कर चुके दमिश्क में इकठ्ठा हुए यहूदी लोगों के दुक्ख और अत्याचार को देखकर मोहम्मद पैगम्बर को ३५५ देवता स्थान का मक्का जो शैव बहुल धार्मिक-व्यावसायिक केंद्र था को सोश्यल इंजीनियरिंग की प्रेरणा मिली। एकेश्वरवाद का यह उद्देश्य केवल रोमन अत्याचार - साम्राज्य विस्तार रोकना मात्र था। उनके आक्रमण के पूर्व उनपर आक्रमण कर कबाइलियों को वेतन के रूप में लूट-अपहरण जो उनके अंगभूत लक्षण थे उसे छूट दी गई थी। वहीं आगे धर्माज्ञा बनी ? या बनाई इसपर टर्की में कुरान संशोधन के लिए समिती बनी है। उनका दावा है कि,अनेक आयत अपने स्वार्थ के लिए खलीफाओं ने अंतर्भूत किये है।
अर्थात ईसाई-इस्लामी मत कोई धार्मिक नहीं न ही धर्म ग्रंथ को कहा जाएं की वह धार्मिक है। इसलिए प्रथम प्रार्थना स्थल नष्ट करना अति आवश्यक ! अरबस्थान में प्रेषित के जन्मस्थान को ही ढहाया गया है।

बृहद भारत भूमि पर हुए आक्रमण-लूट-अपहरण-बलात्कार और सामाजिक विषमता धर्मांतरण का कारन बनी। यही कारन भारत खंड-खंड, देश विभाजन का कारन बना। १९१९-१९३५ के संविधान ने अल्पसंख्य शब्दोत्पत्ती कर वक्फ बोर्ड बनाया। डॉक्टर आंबेडकरजी के संविधान ने राष्ट्रीयता में विषमता नष्ट करने के स्पष्ट संकेत दिए है। उसे लागु किए बिना धर्म निरपेक्षता लागु नहीं। अर्थात जनगणना आयोग के संकेत तथा रफीक झकेरिया द्वारा लिखित पुस्तक के अनुसार, २०२१ में हिन्दू अल्पसंख्य होने का धोका टालने के लिए पूर्वाश्रमी हिंदुओ का शुद्धिकरण आवश्यक ! इसे धर्मांतरण कहनेवाले समान नागरिकता का अर्थात धर्म निरपेक्षता का आग्रह करे !

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